पिंजरा | Pinjara

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Pinjara by उपेन्द्रनाथ अश्क - Upendranath Ashk

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about उपेन्द्रनाथ अश्क - Upendranath Ashk

Add Infomation AboutUpendranath Ashk

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पिजरा ७ दारन के श्तिरिक्त नीचे रदने वाली किसी कमीन लड़की को ऊपर आने का साहस न हुआ था व्यौर न स्वयं दो उसने किसी से बातचीत करने की कोशिश की थी । .... लड़की मुस्करा रही थी और उसकी आँखों में विचित्र- सी चमक थी । क्या बात दे--जैसे आँखों ही आंखों से शान्ति ने क्रोध से पूछा | तनिक मुस्कराते हुए लड़की ने की. कि-बीबी जी पानी लेना है । हमारा नल्का भड्औी-चमारों के लिंएं नहीं है. हुस भड्डी है न चमार फिर कौन हो ? से बीबी जी सामने के मन्दिर के पुजारी की लड़की लेकिन शान्ति ने आगे न सुना था । उसे लड़की से बाते करते बिन छाती थी । धोती के छोर से चाबी खोल कर उस ने फेक दी । श्र है इस कासे-कलटे शरीर में दिल काला न था । और शीघ्र ही शान्ति को इस बात का पता चल गया । रोज ही पानी लेने के वक्त चाबी के लिए गोसती आती । गली मे पूर्वियों का जो मन्दिर था वह उस के पुजारी की लड़की थी । उसीरों के मन्दिरों के पुजारी थी मोटरों में घूमते हैं। यह मन्दिर था गरीब पूर्वियों का जिन में प्राय सब चौकीढ़ार चपरासी साइंस अथवा मजदूर थे । पुजारी का छुट्टम्ब भी खुली गली के एक घोर झद्धियों की चारपाइयों के सामने सोता था । और जब




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now