माटी की सुवास | Maati Ki Suvas

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Maati Ki Suvas by सावित्री डागा -Savitri Daga

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आप तो ऐसे नहों थे वासुदव चतुर्वेदो अगर विसी से यह बहा जाए वि आप ऐसे तो नहीं थे तो सामने वाला यह्‌ सुनकर सांचेगा कि मैं ऐसा नहीं था ता फिर बैंसा था ? बया परिवतन आ गया मुझ्नभे वोन से सुरपाव ये पर लग गए जिसस मुझम कोई परिवतनं आ गया मालूस पड़ रहा है इन सज्जन को । हो सकता है सामन वाने ना नजरिया बदल गया हो जिससे इनके लहजे में उपहास झलक रहा है। वात मटपटी जरूर दै पर आदमी अपने अपकरो पहचाने इसलिए जरूरी है वि और आदमी उसदे बारे मे बया सोचत हैं---इसवका भी अहसास हो | इस क्यन से यह भी अभिप्राय निकाला जा सवता है कि सामने वाला यह कहना चाह रहा है कि म॑ं जा वाजी मारना चाह रहा था--जो वाबि- लियत मुझे प्राप्त करनी चाहिए थी वहू दाल भात भ मूसरचद बनकर आपने प्राप्त करली । आपमे तो एसी उम्मीद नहीं थी। आप तो ऐसे नही थ। इस प्रसग म ही चिन्तन वे ढेर सारे प्रश्न उभरते हैं। अगर आप ऐसे नही थे तो फिर कसे थे | बदलाव नजरिए मे आया या सचमुच किसी शाय कारण सम्बध केउप स्थित हानं पर आप्र वदल गए । वहुरहाल कई धमाका हुआ जरूर है। অলীল লী उस सुनहरी किताब ই फडफडाते पृष्ठा कौ स्मतिया की भटकनं मं देखता ह--झावता हू तो लगता है सुरखाब वे पर निवले नही लगा दिए गए थे। ठीक उसी तरह जिस मनुप्य न नकली पख लगाकर उडने की कोशिश की थी । हुआ या वि जिदगी म॑ एक वार मैं भी महामहिम के हाथो से महिमा मडित हुआ था । जीवन का यही चरमी कप था शायद | उस समय न तो मुकझ्षम कोई विकार ही आ पाया था और न भावातिरेक से गद्गद होने की स्थितिही भाई थी! जिन 17




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