कीतलसर का कलहंस (महाकाव्य )[भाग 2] | Keetalsar Ka Kalhans (Mahakvya) [ Vol. - II ]

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Keetalsar Ka Kalhans (Mahakvya) [ Vol. - II ] by शशिकर -Shashikar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४9 / कीतलसर का कलहंस. भावों का ताल शनैः शनैः सागर के समान बनने लगा। भाव ओर भाषा को मधुर झंकार मेरे मन में उठने लगी। पूज्य श्री पन्नालाल जी का जीवन तो जन्म से लेकर निर्वाण तक संसार के लिए उपकारी रहा है । आज पूरी मानव जाति उनके प्रति कृतज्ञ बनकर नत मस्तक है। वे ऐसे सुमन थे जो संघर्षो के शूलो मे खिलकर अपनी सौरभ से सभी को सुवासित कर गये। वे पद दलित दयनीय जीवों के प्रति सदैव दयालु बन कर रहे । दीन दयाल, दया सागर, दिव्य ज्ञान दाता, प्रेम प्रदाता, दिक्भ्रमित हुई मानवता को सुमार्ग दिखाने वाले दिष्देवता, धरती के दिव्यांशु को मेर शतशत नमन है। साधना के कंटकाकीर्ण मार्ग पर अहर्निश आगे बढ़ते हुए जिन्होंने जीवन लक्ष्य को पाया। अपने सुमधुर कंठों से जिनवाणी के गीतों को गाया। कर्मठ साधक बनकर जप तप से जीवन को ऊपर उठाया। करुणा की कादम्बिनी बन कर के जो शुष्क हृदयों पर सतत बरसे, सत्य का बोध कर जिनसे कापालिक हरषे। हे सत्य- अहिंसा, प्रेम-दया, ज्ञान-चारित्र की लहरो पर विचरण करने वाले कीतलसर के कलहंस यह संसार आपका आभारी हे । यह कृति महाकाव्य कौ कसौटी पर चाहे खरी न उतरे, उसका मुञ्चे कभी भी मलाल नहीं रहेगा। मेरी लेखनी उस दिव्य सन्त के नाम की लिख सको यही उसको सफलता है । इसमे जो अच्छा है उस पर सुधी पाठकों का अधिकार है जो सामान्य है वह मेरे हिस्से का है। काव्य के आलोचकों को इसमे अलंकारो का सघन उपवन देखने को न मिले न सही मगर ज्ञान, दर्शन व चारित्र की त्रिवेणी का प्रवाहक अदृश्य हिमालय उन्हें अवश्य आकर्षित करेगा। कृति को मूर्त रूप में लाने के लिए जहाँ डॉ. श्री कमल प्रभाजी की प्रेरणा, आचार्य सोहनलाल जी म. सा. का आशीर्वाद एवं श्री वल्लभ मुनिजी का मार्गदर्शन सदैव मेरे मानस पटल पर अंकित रहेगा। मैं उन सभी सन्‍्तों का जिन्होंने मुनि श्री पन्नालालजी की गौरव गाथा सुनाकर मेरे मन को आल्हादित कर दिया उनमें राष्ट्र सन्त श्री गणेश मुनि शास्त्री, लोक मान्य संत श्री रूप मुनिजी, उपप्रवर्तक श्री सुकन मुनिजी के साथ-साथ डॉ. नरेन्द्र भानावत प्रो. राजस्थान विश्व विद्यालय एवं डॉ. बद्री प्रसाद पंचोली प्रो. राज. महाविद्यालय, अजमेर का भी चिर ऋणी रहूँगा जिन्होंने कृति की संरचना में मुझे सहयोग दिया। अपनी धर्मपत्नी सीता पारीक पूजा श्री का भी में आभारी हूँ जिसने रचना कर्म में हर क्षण अपनी सहभागिता प्रदर्शित की। प्रस्तुत कृति को पाठकों के कर कमलों में पहुँचाने का गुरुत्व भार ग्रहण कर स्वाध्याय संघ गुलाबपुरा ने जो पहल की उसके लिए मैं उसे भी साधुवाद प्रदान करते हुए पुन: कोतलसर के कलहंस पूज्य प्रवर्तक दीनदयाल श्री पन्नालाल जी म. सा. को वन्दन करता हूँ। पर्युषण पर्व-99 डॉ. खटका राजस्थानी 7, कवि कुटीर, बिजयनगर एम.ए.,पीएच.डी




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