समग्र जैन चातुर्मास सूची - अंक 5 | Samgra Jain Chaturmas Suchi : Ank-5

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रास प्राकृत, राजस्थानी व अंग्रेजी १३ नवम्बर, १९५४, शनिवार, साणंद (गुजरात) : आचारय श्री कैतासपागप्सूरीश्व्नी म सा : आचार्य श्री कल्याणसागप्सूरीश्वप्जी म सा : २८ जनवरी, १९७४, सोमवार, | दीस्ना-तिथीस्यल : | सूल नास : श्रीप्रेमचन्द / श्री लब्धिचंद | पिता का नाथ: श्रीजगन्नाथ सिहजी उर्फ | श्री समस्वरूपसिहजी ॥ खाता खा नास ‡ श्रीपतिभवानीदेी || जन्स-तिषी स्थान: १० सितम्बर १९३५, मंगलवारको | अजीमगंज (बगल) | | प्रारभिदशिष्षा : अजीमगंजसे || धासिंदरिक्षा : शिवपुरी संस्थाममें । भाषा - ज्ञाद : नेगाली, हिन्दी. गुजराती, संस्कृत, ।॥ | 1 ) दीक्षा-प्रदातता | गुझदेव । गणि-पद जैननगर, अहम्दाबाद । एन्पास-पद : ८ मार्च १९७६. सोमवार, जामनगर (गुजरात) | आचार्य -षदं *फ ९ दिसम्बर १९ ३६, गुरुवार को महेसाणा (गुजरात) | विचरघय क्षै : राजस्थान, गुज णत, महाराष्ट, कर्नाटक, आन्धप्रदेश, तमिलनाड्‌, बिहार, प. गान, उडीसा, उत्त प्रदेश, गो.भा तथा दिल्ली, || नेपाल (विदेश) | |! फ त्र्य 286 তেজ) সপ य =-= आचार्यश्री पडखागर सुरीहवर जी न. सा | हे ॥ | সপ ~ ५, | | | | ॥ फद-यात्रा लगभग १लाख किलोमीटर से अधिक साहित्य प्रकाशन : हिन्दी-गुजराती बअग्रेजीमेछठो - | बडी कुल ३० से भी अधिक লক্ষী | प्रेरक कार्य : श्री सम्मेद्‌ शिखर तीर्थ उद्धारक, जैन मंदिर |: हरिद्वार, नेपाल में प्रथम जैन मंदिर की प्रतिष्ठा, स्थापना एवं | श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा (गुजरात) की स्थापना आदि। गत वर्ष आपकी पावन निश्रा में हरिद्वार एवं काठमांडू (नेपाल) (प्रथम जैन मंदिर) आदिदयें प्रतिष्ठाऐ भी सम्पन्न हुई। विश्येष : आपकी वाणी में ऐसा अद्भुत प्रभावशाली जादू एवं आकर्षण शक्ति है कि आपके सम्पर्क में आने वाला हमेशा के | लिए आपका परम भक्त बन जाताहै। आपका प्रभाव गरीबो अमीरो, उच्च राजनेताओ, साधारण आम लोगो मे बहुत ही | गजब का है | देश विदेशो मे आपका प्रभाव विद्यमान है । || आप क्रांतिकारी संत रत्न है | विद्वता पर आपका पूर्ण ॥| अधिकार है। उपदेश अमृत वर्षा के समान बरसती है। जाहिर || व्याख्यानो में श्रोताओ की अपार जन मेदनी समता भरी | साधुता, चन्द्रमा जैसी सौम्यता, समता ओर सहिष्णुता का | योग, शुभ कार्यो मे सतत्‌ प्रयत्नशील, वात्सल्यता आदर्शं | संयमी सत्य अहिंसा ओौर प्रेम की साक्षात्‌ मूरति, समदर्शी संत। | | | | | शिव्य-फरिष्य : २६ । ॥ | | | | | | | | | | | ( आचार्य श्री सन्‌ १९९४ का दिल्ली चातुर्मास सम्पन्न कर || हस्तिनापुर, मेरठ, रुडकी, ऋषीकेश, हरिद्वार आगरा कानपुर, | प्रयागराज, वाराणसी, गया, श्री सम्मेद शिखरजी होते दे | १९९५ मे कलकत्ता में ऐतिहासिक चातुर्मास पूर्ण किया उसके । पश्चातू सम्मेद शिखरजी पटना होते हुए हिमालय की गोद | नेपाल की राजधानी काठमांडू पधारे वहा प्रथम जैन मंदिर की | प्रतिष्ठा सम्पन हुई वहा प्रवचनो का तूफान था उसके पश्चात्‌ अपनी जन्म भूमि अजीम गंज मे सन्‌ १९९६ का चातुर्मास | सम्पन्न कर पनु १९९७के चातुर्मास हेतु भारत की राजधानी दिल्ली मे चातुरमासार्थं पधरे है । दिल्ली चातुर्मास की मगल कामनारे कते है। | .9. वक, एकाय वको, 1२. 8. कश, भिका019 वौ |




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