समग्र जैन चातुर्मास सूची - अंक 5 | Samgra Jain Chaturmas Suchi : Ank-5
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
452
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रास
प्राकृत, राजस्थानी व अंग्रेजी
१३ नवम्बर, १९५४, शनिवार, साणंद
(गुजरात)
: आचारय श्री कैतासपागप्सूरीश्व्नी म सा
: आचार्य श्री कल्याणसागप्सूरीश्वप्जी म सा
: २८ जनवरी, १९७४, सोमवार,
| दीस्ना-तिथीस्यल :
| सूल नास : श्रीप्रेमचन्द / श्री लब्धिचंद
| पिता का नाथ: श्रीजगन्नाथ सिहजी उर्फ
| श्री समस्वरूपसिहजी
॥ खाता खा नास ‡ श्रीपतिभवानीदेी
|| जन्स-तिषी स्थान: १० सितम्बर १९३५, मंगलवारको
| अजीमगंज (बगल)
| | प्रारभिदशिष्षा : अजीमगंजसे
|| धासिंदरिक्षा : शिवपुरी संस्थाममें
। भाषा - ज्ञाद : नेगाली, हिन्दी. गुजराती, संस्कृत,
।॥
|
1
) दीक्षा-प्रदातता
| गुझदेव
। गणि-पद
जैननगर, अहम्दाबाद
। एन्पास-पद : ८ मार्च १९७६. सोमवार, जामनगर
(गुजरात)
| आचार्य -षदं *फ ९ दिसम्बर १९ ३६, गुरुवार को
महेसाणा (गुजरात)
| विचरघय क्षै : राजस्थान, गुज णत, महाराष्ट,
कर्नाटक, आन्धप्रदेश, तमिलनाड्,
बिहार, प. गान, उडीसा,
उत्त प्रदेश, गो.भा तथा दिल्ली,
|| नेपाल (विदेश)
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आचार्यश्री पडखागर सुरीहवर जी न. सा |
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फद-यात्रा लगभग १लाख किलोमीटर से अधिक
साहित्य प्रकाशन : हिन्दी-गुजराती बअग्रेजीमेछठो - |
बडी कुल ३० से भी अधिक লক্ষী |
प्रेरक कार्य : श्री सम्मेद् शिखर तीर्थ उद्धारक, जैन मंदिर |:
हरिद्वार, नेपाल में प्रथम जैन मंदिर की प्रतिष्ठा, स्थापना एवं |
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा (गुजरात) की स्थापना
आदि। गत वर्ष आपकी पावन निश्रा में हरिद्वार एवं काठमांडू
(नेपाल) (प्रथम जैन मंदिर) आदिदयें प्रतिष्ठाऐ भी सम्पन्न हुई।
विश्येष : आपकी वाणी में ऐसा अद्भुत प्रभावशाली जादू एवं
आकर्षण शक्ति है कि आपके सम्पर्क में आने वाला हमेशा के |
लिए आपका परम भक्त बन जाताहै। आपका प्रभाव गरीबो
अमीरो, उच्च राजनेताओ, साधारण आम लोगो मे बहुत ही |
गजब का है | देश विदेशो मे आपका प्रभाव विद्यमान है । ||
आप क्रांतिकारी संत रत्न है | विद्वता पर आपका पूर्ण ॥|
अधिकार है। उपदेश अमृत वर्षा के समान बरसती है। जाहिर ||
व्याख्यानो में श्रोताओ की अपार जन मेदनी समता भरी |
साधुता, चन्द्रमा जैसी सौम्यता, समता ओर सहिष्णुता का |
योग, शुभ कार्यो मे सतत् प्रयत्नशील, वात्सल्यता आदर्शं |
संयमी सत्य अहिंसा ओौर प्रेम की साक्षात् मूरति, समदर्शी संत। |
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शिव्य-फरिष्य : २६ ।
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(
आचार्य श्री सन् १९९४ का दिल्ली चातुर्मास सम्पन्न कर ||
हस्तिनापुर, मेरठ, रुडकी, ऋषीकेश, हरिद्वार आगरा कानपुर, |
प्रयागराज, वाराणसी, गया, श्री सम्मेद शिखरजी होते दे |
१९९५ मे कलकत्ता में ऐतिहासिक चातुर्मास पूर्ण किया उसके ।
पश्चातू सम्मेद शिखरजी पटना होते हुए हिमालय की गोद |
नेपाल की राजधानी काठमांडू पधारे वहा प्रथम जैन मंदिर की |
प्रतिष्ठा सम्पन हुई वहा प्रवचनो का तूफान था उसके पश्चात्
अपनी जन्म भूमि अजीम गंज मे सन् १९९६ का चातुर्मास |
सम्पन्न कर पनु १९९७के चातुर्मास हेतु भारत की राजधानी दिल्ली मे
चातुरमासार्थं पधरे है । दिल्ली चातुर्मास की मगल कामनारे कते है। |
.9. वक, एकाय वको, 1२. 8. कश, भिका019 वौ |
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