अनुभूति और अभिव्यक्ति | Anubhuti Aur Abhivyakti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपनी इस भाग-दौड़ में मनुष्य भूल गया है कि वह सामाजिक प्राणी है और उसका वास्ता दूसरे लोगों से पड़ता है। आत्म-शिक्षा यही तो दर्शाती है कि समाज के अन्य प्राणी भी तुम्हारी तरह हैं। दूसरों की उपेक्षा का मुख्य कारण यह है कि परिधि ओर उस पर दौड़ मनुष्य के भौतिक जीवन के द्वार को खोलती है। यहौँ आकर वह मद-मालिन्य से अनुप्राणित राग ओर देष के द्वन्द्द में फैंस जाता है। एषणाओं के व्यामोह में श्रमित आज का आम आदमी अनेक चित्तो का चक्रवर्ती बन जाता है। उसे विविध चित्तों की चकाचौंध में दूसरों की तो क्या अपनी एकमात्र चेतना का स्मरण ही नहीं रह पाता, चेतना के अभाव में चित्त-समूह का अपना कोई मूल्य और महत्त्व नहीं होता। प्राकृत जीवन-चर्या से हटकर वह कृत्रिम, आडम्बर-मुखी जीवन जीने का प्रयास करता है। फलस्वरूप उसकी सम्पूर्ण जीवन-यात्रा एक सफल-असफल अभिनेता के अभिनय जैसी बन कर रह जाती है। अभिनय ओर आडम्बर-मुखी जीवन-चर्या सदा यथार्थं जीवन के आस्वाद से वंचित रहती है। यही कारण है कि आज का आदमी खाना खाता है, पर अन्ततः वह अनखाता है । जागतिक जीवन की प्रत्येक उपलब्धि में उसे बड़ा भारी बोझ अनुभव हो उठता ह, क्योकि उसके अन्तरंग में ओज का उदय नहीं हो पाता। आत्मिक गुणों के चित्तवन का नाम है भावना। भावना हमारे जीवन के समस्त क्रिया-कलापों की संचालिका है। दान, शील, तप और भाव इन चारों में भाव की ही प्रधानता है। विचार कीजिए, दान दुर्गति को जला देता है, अर्थात्‌ दाता सद्गति ही पाता है। शील सम्पदा का अर्जन करता है अर्थात्‌ सुशीलता से व्यक्ति की शोभा-छवि बनती है। तपस्या से तेजस्विता का विस्तार होता है, अर्थात्‌ तपस्वी बड़ा प्रभावक होता है ओर भाव से होता है-कल्याण। कल्याण हमारे जीवन का अन्तिम लक्षय है, उदेश्य है। निर्दोष भावना से ही उसे प्राप्त किया जा सकता है। भावना को दूषित करने वाली तीन शल्य हैँ : 1. माया शल्य 2. मिथ्यात्व शल्य 3. निदान शल्य दूसरों को ठगने की वृत्ति वस्तुतः माया है। सत्य पर विश्वास न रखना अथवा असत्य पर विश्वास रखना मिथ्यात्व है! काम-पोग की लालसां रखना निदान ह। शल्य से तात्पर्य है कौटा। कौँटा शरीर मेँ कहीं कैसा भी चुभता रहे तो उसमें अशान्ति, असन्तोष आदि अस्थिरता उत्पन कर देता है। यह सभी मन को एकाग्र नहीं होने देता ओर अन्ततः उसकी भावना कभी निर्मल नहीं हो पाती। मानव का अन्तर-हदय-ओँगन का प्रतीक है। जीवन-अओँगन जब स्वच्छ, 16 # अनुभूति ओर अभिव्यक्ति




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