जैन आचार्य चरितावली | Jain Aachaary Charitaavalii
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज - Acharya Shri Hastimalji Maharaj
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ग्राचायं दरितावली ५
|| लावी ॥
वित्तहारो श्रव दमत हरने वाला,
कमशुर से धमशुर हग्रा भ्राला ।
ज्ञान क्रिया ते शासन को दीपाय
भ्रपने पद पर पटधारी नहीं पाया,
श्र तबल से श्रागे को बात बिचारी ॥ लेकर ० ।।६।।
प्रथ --विध्य-नरेण का प्रिय पुत्र प्रभवसिह जो कभी चोर के रूप
में कुब्यात था, वही प्रव दमति हगनेवाना सतः तो गया, दुष्कर्मकर्त्ता धर्म -
नेता बन गया। उन्होने ग्यारह वर्ष तक সালা पद पर रहकर ज्ञान-क्रिया
से शासन को दीपाया । अन्त में अपने पद पर योग्य उत्तराधिकारी को न
पाकर श्रतज्ञान के बल से भविष्य की बात सोचने लगा ॥६।॥।
॥ लावरणी ॥
राजगृह में शब्यमव को जाना,
प्रतिबोधन हित मुनि हथ को भिजवाना।
भ्रा सनि बोले तत्त्व न जाना भाई,
सुनकर चोके याज्ञिक मन के मांहों ।
कहे गरु से सत्य बात कहो सारो ॥ लेकर ० ॥७॥।
क्रथ -आचार्ग प्रभव ने थतज्ञान में उप्रोग लगाकर राजगृहीकै
शय्यंभव भट्ट को योग्य उत्तराधिकारी समझा । फलस्वरूप उसको प्रतिवोध
देने के लिये मुनियुगल को प्र पित किया । शस्गभव ক ভাল নক पहुँच कर
मुनियो न कटा,- “हा कष्टं तत्वं न ज्ञात” । याज्ञिक गय्यंभव इस बात को
सुनकर मन ही मन चोंका आर कलाचारय के पाथ जाकर पूछने लगा, “सत्य
वतलाग्रा तत्व क्या है ? ” ॥। ॥॥
॥ लावरणी ॥
कलाचाय भयभीत कहे सुन स्याना,
तरव जिनेश्वर माग रतो नाह छाना ।
प्रभवसुरि से मेद समभकर जानो,
दृ्बमुक्ति का मागं वही पहिचारो।
यज्ञ दिलावे स्वग न मवभय हारी ॥ लेकर० ।।८॥
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