हिंदी गद्य साहित्य में राजनीतिक तत्त्व | Hindi Gadya Sahitya Mein Rajnitik Tatwa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इसकी महा विश्व ता है । की ही गारतीय गंस्कृति का प्राण है | एसीडिए स्याम ज मैं अधम से दैज्ञ राग नाश तथा धर्म मे राष्ट्र के अभ्युल्थाल की बात बड़ हं। गुल्धा आर्यानों के करा बतलाह है । धर्म की स्यवस्णा स्वं संचालन के हिरि एाजा ही उपरक्षर्थी है | वह प्रजा का साठम महाँ करता, तौ' प्रजा में अराजक्ता कै कटने धै वेशं के जापितत्व का लौप हो जायगा और विश्व धारणः कयम बाला धर्म भा एशातल में नहा जायगा | राजपु पक्प्रजा | र्मों लौक्रय हंपयते ॥ प्रजा 'राजमयापेव से स्रार्दान्ति परत्परम 1 লঙ্টাহ घपः स्यो ন ভাবছি তাজা প আমন 11 (शान्ति € ‡) पज के विग्न पर समाज तथा पाष्टू ष्ण र्वैनाश हौ जाता है । -एजनीतिक नेता ৯৮ ভিত না জেলা সতী अ सपटिथत प किए हैं,वह आज भी उतने ही गुन्दर ल्‍थ मैं अनुन्धणतय औए মাধ है | त्यात जा शव जगृहे कि भाद्तभ्वै कुणि प्रधान धर्मे जौ भता प्व्यं अपन हाथों सै कृष्णि' नहीं करता, दस नहीं। जौततक- बौता, उरौ नैता बनकर दष्ट कौ प्ति में जामि जा कौ! अधिकार नहीं | ৮৮ तनः य समितिं गच्छैहु यरच रौ পিন कषप ।* जनता है व्यण्ति की भावना व्व पृ ट महामाएत कै एाजनसिक मैलग के आदर्श पे पिरत है । व्यास পা भे भारताय राजाओं कौ प्रजातस्त युग के आधिनायणों कै दुर्गुणमैं से मुक्त और सौच्छाचाएी एाजाओं म कषरम है तिन प्रजा क्न {त सिन्तक तथा मग्न क माना है । राजा कौ তা হণ कैस्ड मानने पर सो जनमत की এনঠতনশ প্র नहा क्‌ सै | सहमत की मुह क्था कॉबन-पाण्ट युद्ध सै सम्बन्धित है | इसलिए कॉपि ने अप मुग को उन्म युह~क्ल ॥ उधौगपर्व ३६1३१




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