द्वादशी | Dwadashi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्वादशी /. किशोर बढ़ा भावुक लड़का था। मनोहर बाबू उसे पढ़ाने का उचित ध्यान रखते । स्कूल के अतिरिक्त घर पर भो एक प्राइ- बेट ट्यूटर उसे पढ़ाने आता तथा एक संगीद शिक्षक भो उसें एकं घन्टे गान-वाद्य की शिक्षा देता था। रानी का गला रसीला देख कर शिक्षक महेद॒य उसे गाने में साथ ले लिया करते थे; कदना न होगा कि किशोर ही की इसमें विशेष उत्कठा थी । रानी यद्यपि कुछ खिंच कर गाती थी तथापि उसका गाना सुनने वालों के! बड़ा सरस मालूम पड़ता था| एक बार स्वयं मनोहर बाबू उसका गाना सुन कर चकित हो गये थे । मास्टर से उख समय उन्होंने कहा--यह लड़की अच्छा गा लेती है। इसका गला भी मधुर है ।--रानी के लज्नित होते देख उन्होंने हँसते हुए कह{--क्योरी ! तूने मुझे अपना गाना कभी नहीं सुनाया, अच्छा छब सुनाया करना भला ! | किशोर बीच में बोल उठा--बाबू जो यह मजे में किताबें पढ़ लेती है। किसी दिन पढ़वा कर सुनिये तो |--किशोर गये से खलु था । क्‍ अच्छा सुनंगा--कहते हुए मनोहर बाबू चले गये । इन्हीं परिस्थितियों में रानी का जीवन बीत रही था! द्याः व्रती सरला के समीप उसे अपनी माँ की याद भूली जा रही थी | मुरला का स्नेह इसे स्निग्ध किये रहता था । दोपहर के खाली समय में वह इससे अच्छे उपन्यास पदृवा कर सुनती । सरला स्वयं भी व्युत्पन्न थी । एक दिनि रानी, बंकिम बाबू का “ऋष्णकान्त का बिल' का अनुवाद पद्‌ कर सुना रदी थी-भरमर से गोबिन्द ` लाल का, वह “ अमर, भोर, भोसर, भोम . .... . ..,. काला चाँद, ड




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