द्वादशी | Dwadashi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द्वादशी
/. किशोर बढ़ा भावुक लड़का था। मनोहर बाबू उसे पढ़ाने
का उचित ध्यान रखते । स्कूल के अतिरिक्त घर पर भो एक प्राइ-
बेट ट्यूटर उसे पढ़ाने आता तथा एक संगीद शिक्षक भो उसें
एकं घन्टे गान-वाद्य की शिक्षा देता था। रानी का गला रसीला
देख कर शिक्षक महेद॒य उसे गाने में साथ ले लिया करते थे;
कदना न होगा कि किशोर ही की इसमें विशेष उत्कठा थी ।
रानी यद्यपि कुछ खिंच कर गाती थी तथापि उसका गाना सुनने
वालों के! बड़ा सरस मालूम पड़ता था| एक बार स्वयं मनोहर
बाबू उसका गाना सुन कर चकित हो गये थे । मास्टर से उख
समय उन्होंने कहा--यह लड़की अच्छा गा लेती है। इसका
गला भी मधुर है ।--रानी के लज्नित होते देख उन्होंने हँसते हुए
कह{--क्योरी ! तूने मुझे अपना गाना कभी नहीं सुनाया, अच्छा
छब सुनाया करना भला ! |
किशोर बीच में बोल उठा--बाबू जो यह मजे में किताबें पढ़
लेती है। किसी दिन पढ़वा कर सुनिये तो |--किशोर गये से
खलु था । क्
अच्छा सुनंगा--कहते हुए मनोहर बाबू चले गये ।
इन्हीं परिस्थितियों में रानी का जीवन बीत रही था! द्याः
व्रती सरला के समीप उसे अपनी माँ की याद भूली जा रही थी |
मुरला का स्नेह इसे स्निग्ध किये रहता था । दोपहर के खाली
समय में वह इससे अच्छे उपन्यास पदृवा कर सुनती । सरला
स्वयं भी व्युत्पन्न थी । एक दिनि रानी, बंकिम बाबू का “ऋष्णकान्त
का बिल' का अनुवाद पद् कर सुना रदी थी-भरमर से गोबिन्द
` लाल का, वह “ अमर, भोर, भोसर, भोम . .... . ..,. काला चाँद,
ड
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