लघु शक्तिस्त्रोत्रकाव्यो का साहित्यक अध्ययन | Laghu Shaktishrot Kavyo Ka Sahityak Adhayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
330
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पृत्पन्त करने वाजे अर्थ की अभिव्य॑जना स्तुति काव्य में पायी जाती है । भक्त
का अआत्मीनवेदन अपने में अनेक भावनाओं को समेटे रहता है । अत: वैयाक््तक
अनूभूतियाँ एवं ममगेदी भाव वाणी क्रे द्वारा स्वाभाविक জন में अगभिव्यक्त
होते हैं । हर्ष - विषाद, राग-द्रेष, संयोग त्वियोग इत्यादि शाश्वत मनोवीतत्तया
स्तुतिकाव्यों में भी प्रविष्ट रहती है । प्रायः समस्त अनुभूीतियाँ अत्मातिव्यंजन
प्रधान होती है, अतः जीवन तत्व की सघनता उनमें समाविष्ट रहती है ।
स॑स्कत साहित्य के प्रसिद्ध ईीतहासकार ए० बी0 कीथ ने स्तोत्रों को धार्मिक गीत
या कीवेता कहा है । उन्होने लिखा है “- - - - - परन्तु: स्वभाकत: उच्चस्तर
की कविता ने इस क्षेत्र को भी आक्रान्त करा लिया जोर दाशनिकों द्वारा उन
देवताजओं के विषय में जिनकी वास्तीकिता की व्यावहारिक दृष्टि से निषेध
करते थे ~ स्तोत्र रचना में भाग नेने की प्रवीत्त ने इस कता को और भी अधिक
শিলা प्रदान की ।'
दाशीनिक दृष्टि से स्तुति के अन्तः भाग मेँ प्रकेश करने पर जात होता
है कि मनुष्य को कर्म की प्रेरणा भाव केन्द्र से प्राप्त होती है । भावना ही उसे
लवाहयगोचर पदार्थों का ज्ञान प्राप्त करने के तिथि क्रियाशील बनाती है । प्रत्यक्ष
पदार्थौ के ज्ञान और प्रयोग के पश्चात उक्त भावना हीं उसे अप्रत्यक्ष और अलौकिक
तत्वों के खोज में प्रवृत करती है | प्राकृतिक पदार्थों के मूल में किसी अप्राकीतिक
धराधाकम(भाव এর, ए 8 7 1 2 20 1 ह ए ए ह 1 ए 1 8 2 7, সারার 0 0 9 00 0 1, 8, 0 1 1 1 |
1- ए हिसस््टी अफ संस्कत , क्टिरेचर - १० 210 |
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