मध्यकालीन काव्य में जनवादी चेतना की अभिव्यक्ति के स्वरुप का अध्ययन | Madhyakalin Kavya Mein Janvadi Chetna Ki Abhivyakti Ke Swaroop Ka Adhyyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
207
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्लेटो सृष्टि के मूल में प्रत्यय (10०४) की स्थिति को स्वीकार करते हैँ ओर इस प्रत्यय
जगत् को भौतिक जगत् के परे अपनी वस्तुगत सत्ता से सम्पन्न घोषित करते है। भाव जगत
उनके विचार से प्रत्यय जगत् कौ नकल है । इस नकल मेँ सत् ओर असत् दोनों का अंश हे ।1
जर्मन दार्शनिक लाइबनिज भी सृष्टि के नियंता के रूप में ईश्वर को मानता है,जो
° निरवयव, अविभाज्य, तात्विक ओर चेतन है । हेगेल का दरन््रवाद इस दर्शन को बेहतर ढंग
से व्याख्यायित करता है। जिसे विकासवाद के नाम से भी संबोधित किया जाता है। हेगेल ने
संसार को दरन्दात्मक संबध तथा परस्पर निर्भरता के रूप में स्वीकार किया ।2
हेगेल ने इन्द्रवाद के केन्द्र मे तीन बिन्दुओं को प्रमुख माना -- (1) प्रतिपक्षो कौ
एकता और संघर्ष का नियम (2) मात्रा के गुण में संक्रमण का नियम और (3) निषेध के
निषेध का नियम । इन्ही तीन नियमो के आधार पर हेगेल के विकास कौ अवधारणा का
मूलाधार केन्द्रित है ।9
हेगेल निषेध मे ही विकास की शक्ति को रेखांकित करते हैं और यह विकास
त्रिस्ततीय आयामों पर आधारित होता है-- पक्ष (1४७४७), प्रतिपक्ष (870 7४०७5) तथा
संश्लेषण (39101०515) | अतः पक्ष में प्रतिपक्ष समाहित है ओर जब असंगति होती है तब
तीसरा पक्ष संश्लेषण अर्थात् अन्तर्विरोध जन्म लेता है। मार्क्स तथा एंगेल्स ने हेगेल के
লুল্তুনাহ की स्थापनाओं को निःसंकोच रूप से स्वीकार किया। मार्क्स ने अपने पूजी
(08011) नामक ग्रंथ में लिखा है कि 'हेगेल के हाथों में न्द्रवाद पर रहस्य का आवरण
1 मार्क्सवादी साहित्य चिन्तन -- डॉ० शिवकुमार मिश्र पृ०-7 |
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ও दर्शन के इतिहास कौ रूपरेखा, इ० ख्ल्याविच, प्रगति प्रकाशन, मास्को पृ० 841
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