महात्मा गांधी डॉ. राम मनोहर लोहिया और पं. दीनदयाल उपाध्याय के विचारों के समाजवादी प्रकल्पों का तुलनात्मक अनुशीलन | Mahatma Gandhi Dr. Rammanohar Lohiya Aur Pt. Deendayal Upadhyay Ke Vicharon Ke Samajwadi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
292
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डॉ. आर, दीक्षित का मत है - जिस किसी भी प्रकार से राज्य का उद्भव हुआ हो, इसका
कार्य य] सामाजिक जीवन मे मत्स्य याय न चलने देना।' अन्तिम परिणति के रूपमे भारतीय
अवधारणा के अनुसार - “समाज का गठन भिन्न-भिन्न क्षमताभो वाले समूहो द्वारा हुआ था एव राज्य
का लक्ष्य सामाजिक जीवन इस प्रकार नियत्रित करना था कि प्रत्येकं समूह अपने ढग से अपने
विशिष्ट आदर्शो के अनुसार अपना जीवन निर्वाह कर सके तथा अपने जीवन आदर्श के पालन मे रत
अन्य अधिक शक्तिशाली या दुर्बल समूहो की ओर से उसे कोई बाधा न झेलनी पडे। अतएव ऐसे
सामाजिक सगठनं मे स्वभावत परलोक सम्बन्धी वास्तविक धार्मिक मान्यतार्एे अलग-अलग समूहो की
अलग-अलग हो सकती थी एव सर्वमान्य सगठन का कार्य यही रह जाता था कि प्रत्येकं समूह अपना
जीवनं अपने विश्वासो के अनुरूप व्यतीत कर सकं
इसके अतिरिक्त प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिन्तको ने धर्म दर्शन, अध्यात्म, विज्ञान आदि के
चिन्तन ओर व्यवस्था मे विशेष तत्परता का परिचय दिया, साथ ही उन्होने मनुष्य के भौतिक जीवन
'को नियत्रित सुखी, फलीभूत तथा अनुशासित करने वाले राजशास्त्र के विषय में गम्भीर चिन्तन किया।
प्रचीन भारत मे राज्य को चतुर्वर्ग (मोक्ष) की प्राप्ति के लिए एक आवश्यक और महत्वपूर्ण साधन माना
गया। राज्य राजा तथा उसके धर्म को राजधर्म की सन्ना प्रदान करने का प्रमुख अभिप्राय यही था कि
राज्य प्रजा का हित करते हुए पुरुषार्थ-चतुष्टय के सिद्धान्त पर चले। राज्य का प्रथम कर्तव्य धर्म,
विशेष रूप से साधारण ओर वर्णाश्रम धर्म ॒को स्थिर रखना था। हिन्दू विचारो के अनुसार राज्य का
ध्येय धर्म को स्थिर रखना है। धर्म ही राज्य को स्थिर रखता हे ® “राज्य के सिद्धान्तो मे केन्द्रीय
स्थान धर्म के लिए आरक्षित था। कोई भी राज्य उस मात्रा मे अच्छा या बुरा समझा जाता था जिससे
कि वह धर्म का पालन करता था।' धर्मपालन, शान्ति व्यवस्था सुरक्षा और न्याय को राज्य का
आधारभूत उद्देश्य समझा जाता था।
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। ई, आर, दीक्षित ~ हिन्दू ऐडमिनिस्ट्रेटिव इन्सटीटयूशन की भूमिका से
* (१) जाति जानपदाच्धर्शन् श्रेणी धर्माश्च धर्मवित् |
समीक्ष्य कुलधर्माश्चि स्वधर्म प्रतिपादयेत् ||, - मनुस्मृति, ८४१
(২) श्रेणि नैगम पाषण्डि गणानामप्ययूम विधि |
भेदा चैषा नृपो रक्षेत् पूर्व वृत्तिच पालयेत्।। - याज्ञवल्क्य, २१६५
* ई, पी, राममूर्ति - दि प्राब्लम ऑफ दी इण्डियन पॉलिटी पृष्ठ - १४७
उद्धत ~ ईश्वरी प्रसाद ~ प्राचीन भारतीय सस्कृति, कला राजनीति धर्म तथा दर्शन, पृष्ठ - ३६३
* पी, शमशेर तथा एम, मोहसिन - ए प्लान्ड डिमोक्रेसी
उद्धत -- ईश्वरी प्रसाद ~ प्राचीनं भारतीय सस्कृति कला राजनाति, धर्म तथा दर्शन पृष्ठ ~ ३६३
~~ 3 সপ
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