सुश्रुत संहिता | Sushrita Sanhita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पित्तग्रहाविष्ट. लच्ण नागाविष्ट १? राचसाविष्ट 29 पिशाचाचिष्ट १9 सहाविष्ट के जसाध्य : देवादियों के ग्रहण का काठ यह वेश प्रकार देवासुर के चिशिष्टगुण देवादिक भाविष्ट नहीं हो ते हैं दरोर में अह परिचारकों का प्रवेश होता है देवगणानुचरों की देवतुरुय ता देवग्रहों की संख्या देवग्रहों का स्वभाव भनुचर ग्रहों की वृत्ति य्रह्हों की भूतसंज्ञा भूतविधानिरुक्ति ग्रहसामान्य-चिकित्सा प्रहद्यान्ति के लिये मार्याद्यपह्ार इृष्ट बलिदान . वस्त्रादि बलि के देने का समय बलिदान के लिये देवस्थान विभिन्न बलिस्थान यच्त के छिये बलिदान पितृ और नारा ग्रह के लिये बलिदान राचस औोर पिशाच के लिये बलिदान मन्त्र और बलि के ट्वारा लाभ न होने पर अन्य उपाय अजादिरोम का घूपन ग्रह्दोपदान्ति के लिये नस्य, अ जन तथा सेक खराश्वादिपुरीघसिद्ध सेल ग्रहजुष्ट में तक्रमाछादि वर्ति ग्रहदोष में सेन्धवादि स्वर हदो षर्मे लशुना दिचग सिद्धघृत देवग्रह में अचोचप्रयोगनिषेध ग्रहजुष्ट में हविताहारादिसेव नो - पदेश इकसठवाँ अध्याय अपरमारप्रतिषेघवणन अपस्मारनिरुक्ति अपस्मारोत्पत्तिहेतु अपस्मार का पूव॑रूप अपस्मार का रूप चातिकापस्मार रचाण पत्तिकापस्मार.... >> ेष्मिकापस्मार >>? १3 2२४६३ 9 ने ४४४ विषयसूची | चातादि-अपस्मारों में विशिष्ट तथा सामान्य लचण सान्निपातिक अपस्मारके लच्ण | परमतत से आगन्तुकापस्मार का श चणन भपस्मार का दोषजन्यत्व-साघन रोगों की नियतकालोत्पत्तिका हेतु | दोषों की अत्प वाल में भी रोगो- व्पादकता भपरस्मार चिकित्सा | भपस्मार में अहोक्त चिकित्सा का अतिदेश भपस्मार में शिध्वादि तेछ | भपस्मारददर गोधादि ' अपस्मार में शिरोविरेचन तथा देचचिकित्सा | भपस्मार में दोषानुसार दोघन वातिकापस्मार में कुल्व्थादि घृत पेत्तिकापस्मार में काकोल्यादि शप्मापस्मार सें कृष्या दि १2 भपस्मारादि में सिद्धाथंक पश्चगव्य ड? भाग्य दिसुरा प्रयोग अपस्मार में सिरावेघ बासठवाँ अध्याय उन्मादप्रतिपेघवणन उन्मादनिरक्ति उन्माद के भेद उन्माद के पू्चरूप | चातिकोन्माद के छक्षण |. | पत्तिकोन्माद 27 कफ जोन्माद 22 सान्निपातिको न्माद 2 मनोदुःखजोन्माद के हेतु | मानसदुःखजोन्माद के छक्षण विषजोन्माद के 2 | उन्मादचिकिर्सा | 'घूप, नस्य तथा अभ्यज्ञ योग . | उन्माद में भय, विस्मापन आदि चिकित्सा उन्माद में आद्दारादि व्यवस्था । मंहाकल्याण घृूत फलचघूत | ब्राह्मयादि चति उन्माद में सिरावेघ उन्माद में अपस्मार चिकित्सा का अतिदेश दान्तोन्माद में कतंब्य | उन्माद में चित्तप्रसादनो पदेश | वोकज भर विषज उन्माद की चिकित्सा तिरसठवां अध्याय रसमेद्विकरपवण न रखभेदकथन में प्रयोजन रस केसे तिरसठ मेद्‌ को प्राप्त होते हैं दोषानुसार च्रिषष्टि रसों का उपयोग ट्विरससंयोग से पन्द्ह भेद त्रिरससंयोग से बीस प्रकार चतुष्करससंयोग से पन्द्रह प्रकार पत्नरसयोग से पट्‌ जज पड़सयोग से फ्क 9१ पकंकरस से घड़स भेद रसमेद्चिघयक उपसंहार चौसठवाँ अध्याय स्वस्थचृत्त विषय विवेचना अतिदेश से स्वस्थलक्षण तथा चिकित्साप्रयोजन स्वस्थचृत्त का विस्तार ऋगत्वाश्रय स्वस्थवत्त वषतुंचर्या दारघ्यां हेमन्ततुचर्या वसन्ततुचर्या ग्रीष्मतुवजेनी य | परीष्मतुचर्या _ ग्राकट्चर्या ऋतुपथ्याचरण का फल | द्वाद्दा भदान-प्रचिचार | वीताहार विषय उचष्णाहार दे खिर्घाहद्ार १2 रूचाहार 73 द्वाइ्ार 2; रुष्क भोजन १) १३ ४६२ 2 ४६६३ २७४ एककाल तथा द्विकाल आहारविषय + ओषध युक्त मात्राहीन आदारका “7 यथतुद्त्ताह्दारफऊ स्वस्थवरयथ आहार दश औपघकालचणन अभमक्तकालनिखूपण | अभक्तोपघसे वन फर प्राश्स ततः- भी घघव्णन प्राग्मक्रोषघसेवनफठ | अधघोभक्तोषघवर्णन ८८




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