शिक्षक - प्रशिक्षण के सिद्धान्त एवं समस्याएँ | Shikshak Prashikshan Ke Siddhant Evm Samasyaen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)माध्यमिक शिक्षक-प्रशिक्षक ७
होता है । इसी कारण शिक्षा आयोग (१६६६) ने कहा, “राजकीय संस्थाओं में
अध्यापक और निरीक्षक आपस में बदले जा सकते हैं और फल यह होता है
कि अथोग्य भौर अवांछनीय लोग प्राय: प्रशिक्षण शालाओं में नियुक्त कर दिए
जाते हैं। अतः यह परम आवद्यक है कि प्रशिक्षण झालाओं के लिए केवल
योग्यतम और सर्वोत्तम पात्न ही चुने जाएँ ।”!
शिक्षक-प्रशिक्षकों के चुनाव के लिए यह आवश्यक माना जाता है कि
उन्हें विद्यालयों में अध्यापत का अनुभव हो । इसका अर्थे यह हुआ कि
विद्यालय का अध्यापक ही आगे जाकर शिक्षक-प्रशिक्षक बन सकता है । लाभ
तो यह है कि विद्यालयी अनुभव के कारण विद्यालयों की वास्तविक परि-
स्थितियाँ और समस्याओं की जानकारी हो जाती है और फिर उसके आधार
पर दिया जाचे वाला प्रशिक्षण वास्तविकता से काफी समीप होता है । यह भी
सच है कि अध्यापकों के वेतन-मान अच्छे नहीं होने के कारण योग्यतम
व्यक्ति इस ओर आदकृष्ट नहीं होते। शिक्षक-प्रशिक्षकों का चुनाव भी
अध्यापकों से ही होता है अतः योग्यतम व्यक्ति फिर कम ही उपलब्ध हो
पाते हैं ।
एक कठिनाई और है। प्रशिक्षकों के लिए व्यावसायिक योग्यता पर
भी बल दिया जाता है। यह उचित ही है कि प्रशिक्षक स्वयं प्रशिक्षित तो
होना ही चाहिए। यदि बी. एड. को अध्यापन करने वाला स्वयं उक्तस
उच्च योग्यता प्राप्त अर्थात् एम. एड. नहीं है तो वह अपने विषय का अध्यापन
भरी प्रकार नहीं कर सकता | হল, एड. में प्रवेश के लिए बी. एड. आवश्यक
योग्यता मानी जाती है और अधिकतर प्रथम और, द्वितीय श्रेणी स्नातक या
अधिस्नातक बी. एड. में जाते ही नहीं क्योंकि अध्यापन के व्यवसाय में उन्हें
तरक्की के बहुत कम अवसर दीखते हैं। शिक्षक-प्रशिक्षण महाविद्यालयों में
दोक्षिक मनोविज्ञान, शैक्षिक दर्शन और হাঁলিন্ধ समाजशास्त्र वे ही
अध्यापक पढ़ाते हैं जिन्होंने कि इन विषयों का अध्ययन बी. एड, अथवा
एम. एड. स्तर पर किया हो । निश्चय ही, कुछ अनुभवी व्यक्तियों को
छोड़कर अन्यों में इन विषयों को पढ़ाने की योग्यता नहीं होती । शिक्षा
आयोग (१६६६) भी इस बात से सहमत है--शिक्षा में वत्तिक योग्यता की
आवश्यकता पर जोर दिया जाने के कारण ऐसे अध्यापक प्रशिक्षण शालाओं
में नियुक्ति नहीं पा सकते जो बन्य विषयों में विशेष योग्यता प्राप्तं ओर
निस्संदेह स्तर ऊंचा उठाने में सहायक हो सकते हों । शैक्षिक मनोविज्ञान,
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