मेरे निबन्ध | Mere Nibandh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
232
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मेरी देनिकी का एक पृष्ठ ७
आयु प्रायः बारह साल की है, तुरन्त उत्तर दिया, “आप अगर
बाबूजी के बच्चे बनेंगे तो वे आपको पढ़ाना छोड़ देंगे क्योंकि
आप बच्चों को नहीं पढ़ाते हैं।” यही मेरे पारिवारिक जीवन
की कमी है। वेसे इन भंझटों के होते हुए भी अत्यन्त सुखी हैँ।
चारों ओर अनुकूलता और आज्ञाकारिता है। में हृदय की
सचाई से कह सकता हूँ कि जन्म-जन्मान्तर में भी मेरा जन्म
इसी परिवार में हो। में मोक्ष के लिए उत्सुक नहीं हूँ ।
মগ
नोट--इप दिनचर्या में थोडा परिवर्तन हो गया है। मैंस के
प्रति तुलसीदासजी का सा अनन्य भाव रखते हुए भी अब भेंस के स्थान
पर गाय पाल ली है। समसयाएँ तो करीब-करीब वे ही हैं। आजकल
मेरे पड़ोसी के यहाँ घास अच्छी है--बैसे भी पराई पत्तल का भात
अच्छा लगता है---उस पर आक्रमण होता है। समय मिलने परमै रघुवंश
(२। ५) मे वर्णित महाराज दिलीप के पूरे कार्यक्रम का अनुकरण करता
हँ--“आप्वादवक्धिः कवलेस्तृणानां कण्ड्यनेदशनिवारणैश्र' अर्थात् घास के
सुस्वादु ग्रासो से, खुजलाने से श्रौर डॉस उड़ाने से मैं उसे प्रसन्न करना
चाहता हैं; केवल एक बात की कसर रह जाती है-मे उसकी अ्रव्याहत
स्वच्छुन्द गति में सहायक नहीं हूँ और यह नहीं कह सकता “अव्याहते:
स्वैरगतेः' क्योकि उसके स्वच्छुन्द विचरण में पेड़ोसियों के विनमप्न परन्तु
तीखे उपालम्भों का मय रहता है। मे यदि सम्राद् होता तो उसकी
अबाधित गति पर आक्षेप करने का किसी को साहस न होता। भुस के
लिए मुझे अब बाजार नहों जाना पडता। बाजार हाट का बहुत सा
काम अरब मेरा कनिष्ठ पुत्र विनोद कर लेता है। कम्पोजीटर अब भी
मुझसे परेशान हैं ।
[ मेरी असफलताएँ? ]
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