मेरा जीवन प्रवाह | Mera Jiivan Pravaah
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
439
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वे तीअं-स्वरूप ड
उत्साह ओर उत्सव में बीतता था। मकरसंक्रान्ति के दिन, सिंघाड़ी नदी
पर, बढ़े तड़के हम लोग पवस््नान करने जाते थे । मेरी नानी संक्रान्ति
पर नाना प्रकार के पकवान बनाया करती थीं । आषाढ़ में ओरत गाँव
के बाहर, देवो-देवतों के मंदिरों के आसपास, गकड़ियाँ ८ बाटियाँ )
खाने जाती । सादें ( पके आम ) वहाँ खूब चूसने को मिलती थीं।
सावन की कजक्नियों की सवारी भी धूमधाम से निकलती थी। कृष्ण-
जन्माष्टमी की ङी हमारे घर पर सजादं जाती थी । गान-वाद्य के
साथ सात-झाठ दिन हम लोग नन्दोरक्षव मनाते थे। मुझे याद दे कि एक
रेसे ही उत्सव पर मेरे उदार हदय नाना ने भक्ति-विह्ज्न होकर घर का
बहुत-सारा चाँद! का जेवर कीत्तन करनेवाल्ों को दे दिया था। फिर राम-
ज्ञीला के दिन आ्राजाते | महीनों से में रामज्लीज्ञा की बाट जोहता था।
“जलन -विद्वार 'का मेल्ला तो हमारे यहाँ का दूर-दृरतक प्रसिद्ध था । मोहरंम
भी खूब घूम्रधाम से मनाया जाता था । हमारे छतरपुर के ताज़िये मशहूर
थे, ओर अ्रब भी हैं । ऊदलघिंह का अ्रबरख का ताज़िया कितना कल्ना-
पूर्ण बनता था! हिन्दू-मुसलमान के बीच तनावट का तब काई सवाल ही
नहीं था, ओर आज भी उधर यह ज़द्दर नहीं पहुँच पाया। एक-दूसरे
के त्यौद्दारों में हिन्दू ओर मुसलमान बढ़े प्रेम से द्िस्सा लेते थे । ताज्ियों
के मेले में दम छोटे-छोटे बच्चे रेवढ़ियाँ श्रोर मसाला खरीदते थे ।
यह मेरे जन्मस्थान छुतरपुर की बाल-कट्दानी है। छतरपुर बुन्देल-
खण्ड को एक छोटो-सी रियासत थी । वर्ह, संवत् १६२ दी राम-
नवमी के दिन, एक गरीब ब्राह्मण-कुल मं मेरा जन्म ह्या । इह ॒या
सात महद्दीने का था कि पिता का स्वरगंवास होगया। लाल्नन-पालन सेर
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