तीर्थंकर महावीर | Teerthanker Mahaveer

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Teerthanker Mahaveer by अनूपचन्द्र जैन -Anoopchandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) कुण्डपुर अर्थात्‌ कुन्डलपुर में राजा सिद्धार्थ का सात मंजिल का नन्‍ध्ावत नामक राजप्रासाद था।* राजा सिद्धार्थ अपनी नवपरिणीता रानी त्रिशला के साथ उस राजप्रासाद मे ऋषभदेव ओर पाश्वनाथ अदि तीर्थकरों की भक्ति पूजा करते हुए अत्यन्त सुखपूणं जीवन व्यतीत कर रहे थे। तभी एक शुभ दिवस आपाढ़ शुक्ला ६ शुक्रवार तदनुसार १७ जून ई०पू० ५६६ को प्रियकारिणों त्रिशला ने रात्रि के अन्तिम प्रहर मं सोलह शुभ स्वप्न देखे । वे इस प्रकार थे--गर्जन करता हुआ ऐरावत हाथी, बेल, सिंह, हाथी के द्वारा कलशाभिपिक्त लक्ष्मी, लटकती हुई दो पुष्प मालाएं, चांदनी युक्त चन्द्रमा, उदित होता सूर्य, सरोवर में क्रीड़ा करती हुई दो मछलियाँ, दो स्वणं कलश, पद्मसरोवर, लहरयुक्त समुद्र, रत्नजटित देवविमान, नागेन्द्र भवन, प्रकाशमान रत्नराशि, धूमरहित प्रर अग्निज्वाला ।* प्रातःकाल प्रसन्नवदना त्रिणला अपने स्वामी राजा सिद्धार्थ के पास पहुंची और उनसे अपने स्वप्नो का फल पृष्ठा । राजा सिद्धार्थ ज्योतिष विद्या में निष्णात थे । उन्होंने विचार करके बताया--“रानी ! तुम्हारे गर्भ में एक महान आत्मा अवतरित हुई है जो जन्म लेकर आत्म-कल्याण करते हुये विश्व एवं प्राणीमात्र का महान्‌ कल्याण करेगा ।* वह विश्व में हिंसा, चोरी आदि अनेक दप्क्मों से प्रस्त एवं दुखी प्राणियों का कल्याण कर श्रेयस्कर १. नन्द्यावतं अर्थात्‌ सतत आनन्द प्रदान करने वाला । कुन्डपुर बिहार के नवीनतम निर्मित वेशालो जिनिमंदहै। वंशानी द्री महावीर की जन्म- भूमि है, ऐसा नवीन अनुसन्धान द्वारा सिद्ध किया जा चुका है। 4১0 68119 [11516 01 ५६४६७) : 7. ४०९८५५४ ४ २, माता यस्य प्रभते करिपति वृषभौ सिहपोतं च लक्ष्मी । मालायुग्मं शशांक रवि झपयुगले पूणं कुम्भौ तटाकं ॥ ঘাধীঘি सिहपीठं सुरगणनिभूतं व्योमयानं मनोज्ञ । चा द्राक्षीन्नागवासं मणिगण शिखिनौ तं जिनं नौमि भक्तया ॥ ३. रानी त्रिशला की सोलह स्वप्नों को देखते हुए एक प्रतिमा लखनऊ पुरातत्व संग्रहालय में है। ४, तीथ्थंद्र की माता एक ही पुत्र की जननी होती है ।




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