प्रार्थना - प्रवचन भाग - 2 | Prarthana Pravachan Bhag - 2

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Prarthana Pravachan Bhag - 2  by महात्मा गाँधी - Mahatma Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राथना-प्रवच न ११ पैसे दिये बिना एम भी मसाफिर न चले । तब तो मैं कह सकता हूं कि हमें सच्ची आजादी मिली है । मेरी वात को सुननेवाले कोई हजारों लोग कौन सूनाएगा? अगर मैं रेलवे मैनेजर या रेलवे मिनिस्टर होता तो मेरे मातहत जितने लोग काम करते, उनको यह हुक देता कि जितने लोग रेलोंमें तुम्हारे सामने चलते है उनको यह कह दो कि हम मारपीट तो करेंगे नहीं, गेल आपकी है, हम आपके नौकर हैं, लकिन बिना पैसा दिये हम आपको लेजा नही सकते। अगर रेल जगलमे भी जा रही है तो उसे रोककर वहीं खडी कर दे । अगर फिर भी वे न मानें तो एजिन डाइवरको यट हुक्म देना चाहिए कि वह एंजिनको याडी से अलेग करके ले जाय । तव न किसीको गाली देना है और न किसीकों मजदूर करना है, सिर्फ गाडी को वही खड़ी रहने दें । जबतक लोग मुफ्तमें सफर करें तवतक यही करना चाहिए । प्राखिर यह कोई शराफत नही है कि आप सुफ्त गाडीमें बैठ जाएं, मारपीट करें शौर जहां चाहा वही उसको रोक लें। यह तो मैंने आपको यहां की बात सुनाई । लेकिन मैंने सुना हे कि पाकिस्तानमे भी लोग ऐसे ही मुपत रेलों में घूमते है । वहां भी क्यों न लोग मुफ्त चले ? आखिर हम एक ही हवामे १दा हुए हैं, एक ही जसा नमक खाते है, तो पीछे वहा भी क्यों न वही हो जो यहा होता है । अगर यही हाल जारी रहा तो दोनों दिवालिया हो जायंगें॥ इस तरहसे किराया न देकर रेलों में सफर करें, जहां रिश्वत खाना है वहां रिश्वत खाए और जिसको मारना है उसको मारे, तो पीछे हम बिलकुल लुटेरे लोग बन जायंगे । श्राजादीके भ्रानेसे हमा री जो कीमत वद़ गई थी, वह कीमत बिल- कुल चली जायगी। इसलिए जितने लोग सुन सकते हैं, वे सुनें श्रौर मिनिस्टर भी सुन लें, क्योंकि एक जानकार आदमीकी हैसियतसे मैं कह रहा हूं कि अगर यह सिलसिला न रुका तो आपको गाड़ियां बंद करनी होंगी । गाड़ियां चलेंगी नहीं और जो चलेंगी उसमें कोई झ्रादमी मुफ्त नहीं जा सकता ।




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