श्री चन्द्रावली नाटिका | Shri Chandra Vali Natika
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीत्रनद्रावली | [७
वनमाला की, बक पंक्तियों से मोतीमाल्ा की, कोयलों की ध्वनि से मुरली-नाद
की स्पृति बारम्बार ्राती है) वर्षा तोउपके प्राणों की गाहक ही बन
जाती है।
भक्ति-भावना ओर जीवन-दशन
“चन्द्रावली नाटिका में मारतेन्दु जी ने अपनी अनुराग रंजित-मक्ति-मावना
का परिवय दिया है। भारतेन्दु का जीवन प्रेम और चिरह की मार्मिक कया है ।
उनके विरह प्रौर प्रेप-जनित वेदना का ज्वार हो “चन्द्रावली' में फूट पड़ा है ।
भारतेन्द्र जी प्रेम-निष्णात वैष्णव भक्त थे। उन्हें ने कृष्ण के प्रति एकनिष्ठ
प्रेम का निरूपण किया है! “चन्द्रावली नाटिका' उनके जीवन की अभिव्यक्ति
के रूप में प्रस्तुत हुई है । चन्द्रावली मे वशित प्रेम का स्वरूप भक्ति मे काम-
रूपा अंग के अन्तगंत है । 'समपंण' में भारतेन्दु जी ने अपने प्रेम और मक्ति-
सिद्धान्त का निरूपण किया है---
“इसमें तुम्हारे उस प्रेम का वर्णा है, इस प्रेम का नहीं जो संसार में `
प्रचलित है ।”
नांदीपाठ' में भारतेन्दु का निम्न कथन उनकी भक्ति-भावना को पुष्ठ
करता द्वै--
'नेति-नेति तत् शब्द-प्रतिपाद्य सं मगवान |
चन्द्रावली चकोर श्रो कृष्ण करो कल्यान
चन्द्रावलौ का प्रम वल्लम-सम्प्रदाय की पुष्टिमार्गीय भक्ति-भावना के अनु
रूप है । यह भक्तोंको लौकिक धरातल से उठाकर आध्यात्मिक धरातल पर
ले जाने वाला है। पुष्टिमार्गीय प्रेमा-भक्ति के रुवरूप और महात्म्य को भप्रति-
पादित करते हुए मारतेन्दु जी विष्कमक में शुकदेव जी से कहलाते हैं--
वह् जो परम प्रेम अमृतमय एरकात मक्ति है, जिसके उदय होते ही भ्रनेक
प्रकार के आग्रह स्वरूप ज्ञान-विज्ञानादिक अंधकार नाश हो जाते रौर जिसके
चित्त में आते ही संसार का निगड्ठ आप से आप खुल जाता है--वह किसी
को नहीं मिलो; मिले कहाँ से ? सब इसके प्रधिकारी मो तो नहीं है 1
नहीं-नहीं, ब्रज गोपियों ने उन्हें जीत लिया है, आहा ! उनका कैसा विलक्षण
प्रेम है कि--अकथनीय और अकरणीय है, क्योंकि जहाँ काहात्म्य ज्ञान होता
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