बिखरे विचार | Bikhare Vichar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.65 MB
कुल पष्ठ :
260
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पिलानी-कलकत्ता-दिल्ली ७ पहुँच गये किन्तु दिल्ली कंसे पहुँचें यह चिन्ता हुई । रात को कोई गाडी दिल्ली नहीं जाती थी ।. स्पेदाल के लिए पुछा किन्तु कहा गया कि इजन तैयार नहीं है । रेल के कर्मचारी चाहते थे कि किसी भी तरह कुछ मेरी सेवा कर दें किन्तु कर न सके । आख़िर रात-भर रेवाडी में ठहरना पडा और कलकत्ते की यात्रा एक दिन के लिए स्थगित रक््खी गई । कहाँ तो मोटर से सीधे दिल्ली पहुँचने का विचार और कहाँ रातभर रेवाड़ी में पडे रहना इसी को कहते हैं मनुष्य सोचता कुछ है और होता हैं कुछ और-- मुर्नथ0 890 00 ठ1500565 रद रद कलकततें से प्रस्थान किया तो लोगो को ऐसा लगा मानो में सीधा जेनेंवा जा रहा हूँ । रटेदान पर अच्छी भीड थी । फूलो का खासा दुरुपयोग किया गया । मुझे भी वियोग की-सी झलक मालूम दी । मेने सोचा कि चार महीने का वियोग इस तरह से खटकता है तो ससार से जब लोग विदा होते हैं तब मन में न मालूम क्या-क्या भाव उठते होगे । किन्तु इसका उत्तर कौन दे ? मेने तीन आत्माओं की अन्तिम विदाई देखी है । दो को तो अन्त समय तक प्तान था कि उन्हे इस संसार को छोड़ना है एक ने शान्ति से विदाई ली । ये तीनो मित्र माज भी मेरे हृदय
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