पुण्य स्मृतियाँ | Punya Smritiyan

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Punya Smritiyan by महात्मा गाँधी - Mahatma Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भगवान बुद्ध ५ ओर उस आसन पर बैठे हुए लुटेरे को गिरा दिया । उन्होंने इस संसार के शाश्वत और अटल नेतिक नियमों पर जोर दिया, और उसकी घोषणा फिर छिर से की । उन्दोंने बिना किसी दिचक के काह कि नियम ही परमात्मा ই। बुद्ध का सबसे बढ़ा काम तीसरी बात यह नीचा खयाल है कि नीची श्रेणी के जोव- धारियाों के जीवन का महत्व हिन्दुस्तान के बाहर दही सममा गया है । परमात्मा को उनके शाश्वत आखन पर पहुँचाने में बुद्ध की जो बड़ी भारी सेवा थी,- उससे भी उनकी बड़ी सेवा में यह मानता हूँ कि उन्होंने मनुष्यों के ही बराबर दूसरे प्राणियों के भी जीवन । का आद्र करना सिखलाया, चाहे पे छितने दी छोटे क्यों न हों मे जानता ह छि उनका अपना भारतवषं उस हृद तक ऊँचे नहीं चढ़ा, जो देखकर उन्हें खुशी होती, मगर जब उनको शिक्षाएँ दूसरे देशों में बौद्ध धरम के नाम से पहुँची, तब उनका यह अथं लगने लगा कि पशुओं के जीवन की वद्दी कीमत नहों है जो मनुष्यों के जोवन की है । मुभे सिलोन के बौद्ध धम के रिवाजों का ठीक पता नहीं है मगर में जानता हूँ कि चीन और बमा में उसने कौनसा रूप धारण किया है। खासकर बमो में कोई बौद्ध एक भी जानवर नहीं मारेगा, मगर, दूसरे लोग उसे मार भोर पकाकर लावे' तो उसे खाने मे कोई भिमक नहीं होगी। संसार में अगर किसी शिक्षक ने यह सिखलाया है कि हर एक कायं का फल अनिवाय रूप से मिलता है तो गौतम बुद्ध ने ही,




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