संस्कृत काव्यों में चित्रकूट | Sanskrit Kavyon Me Chitrakut

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पर्यावरण भी आकर्षण की वस्तु रहा है । कल-कल निनाद करती हुई पवित्र नदियों, पर्वतों से झर-झर प्रवाहित होते हुए निर्झर और निर्ईरणियाँ, गिरि-गह्वर, पर्वत-कन्दराएं, गगनचुम्बी, पर्वत शिखर-मालाएं अनेक प्रकार की लताओं ओर बहुविध पुष्पित पादपो से युक्त ` वन कान्तार-प्रदेश किस वीर्थयात्री के मन को आकर्षित नहीं कर लेते । संस्कृत-सहित्य मे वर्णित तीर्थो. का पर्यावरण इतना मनोहारी ओर प्रदुषणमुक्त रहा दै कि वहाँ देश के मनीषी- ऋषिगण, सपरिवार निवासं करते रहे हँ । तीर्थो. का यह शान्त वातावरण ही ऐसे उदान्त विचार देने के लिए ऋषियों को सदैव प्रेरित करता रहा है । पर्यावरण का जन समान्य पर जो प्रभाव पड़ता है वह अप्रतिम है । पर्यावरण का तात्पर्यं उस वातावरण सेहे जो हमारे चारों ओर फैला हुआ है । यह चारों ओर का वातावरण प्राकृतिक अवस्थाओं और दशाओं का एक सम्मिलित रुप है जो धरातल, जल, वायु, मिट॒टी, हवा तथा पानी से निर्मित है । हमारे देश के प्राय: सभी तीर्थ. प्रकृति की सुरम्य स्थली में स्थित रहे हैँ जिनका पर्यीवरण परम शान्त धीर ओर गम्भीर ओर परिशुद्ध रहा है । बड़े-बड़े नगरों में जो प्रदूषण देखने को मिलता है वहाँ न केवल शारीरिक स्वास्थ्य प्रत्युत मानसिक शानित की स्थिति निरन्तर बिगड़ रही है । महानगरों में रहने वाले लोग शान्ति के अभाव में अशान्त दिखाई देते हैं । उनका मानसिक सन्तुलन बिगड़ रहा है मानवीय संवेदनाएं विलुप्त हो रही हैं । वे इमारतों के जंगल से घिरे हुए हैं जहाँ प्राण वायु का अभाव है ओर जहो स्वच्छता की सस भी नहींली जा सकती, जिसके कारण महानगर कै लोग आज अपने मन के करूरतम भावों को प्रकट कर रहे हैं । महानमरों का पर्यावरण पूर्णरुप से प्रदूषित हो गया है । एसे वातावरण मे मनुष्य के मन मेँ उदारता दया, कारुण्य, दाक्षिण्य ओर पर दुःख-कातरता के भावों का उदय कैसे हो सकता है ।




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