विश्वविध्यालयीन छात्राओं के स्त्री स्वातंत्र्य सम्बन्धी दृष्टिकोण का समाजशास्त्रीय अध्ययन | Vishvayvidaylien Chhatraon Ke Stri Swatantry Sambandhi Drishtikon ka Samajshastriy Adhyayan

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Book Image : विश्वविध्यालयीन छात्राओं के स्त्री स्वातंत्र्य सम्बन्धी दृष्टिकोण का समाजशास्त्रीय अध्ययन  - Vishvayvidaylien Chhatraon Ke Stri Swatantry Sambandhi Drishtikon ka Samajshastriy Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अविवाहित रहने वाली लड़कियों को अमाजू' कहा जाता था। पुरोहितों को गायें और दासियाँ ही दक्षिणा के रूप में दिया जाता था। दान के रूप में भूमि न देकर दास-दासियाँ ही दी जाती थीं। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि वैदिक काल में स्त्रियाँ-पुरुषों की संपत्ति न मानी जाकर सभी मनुष्यों के समान थी। उसक अपनी इच्छा का महत्व था। | রি वैदिकोत्तर काल ` वैदिकोत्तर कालीन समय मे शदि्ो प्रतियोगिता के आधार पर होती थी। आर्य समाज में समय बीतने के साथ स्त्रियों की स्थिति में अपेक्षाकृत अंतर आया। वेदों की व्याख्या के लिए धर्म ग्रंथों की सृष्टि होने. लगी | इन है धर्म ग्रन्थों में स्त्रियों के सीमित अधिकारों का उल्लेख मिलता है। ज्यों-ज्यों . समय बीतता गया स्त्री की स्थिति भी गिरती गयी। हिन्दुस्तान मेँ स्त्रियँ 1 के चरित्र कं साथ सवाल जोडकर उसे लाजवन्ती या छुई-मुई बना दिया गया । विवाह के सम्बन्ध मं कुछ मान्यताएं निर्धारित कर दी गयी अर्थात्‌ इस ` संबंध में इनको कोई मान्यता नहीं दी जाती थी उसके वैधानिक अधिकार सीमित थे अचल संपत्ति पर उनका कोई अधिकार नहीं रहा। इस ए युग में स्त्री पर पुरुष की सत्ता प्रमुख रही। 8 निन्त जाति की सत्यो व उच्च जातियों की स्त्या मे भेद मादपूर्ण व्यवहार शुरू हुआ। निम्न जाति की स्त्रियाँ बेच दी जाती थी। उन्हें अपने धर द है ऊपर कोई अधिकार नहीं था। कपड़े पहनना भी उनके लिए जरूरी नहीं




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