साहित्य मीमांसा एक धार्मिक विवेचन | Sahitya Mimansa Ek Dharmik Vivechan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sahitya Mimansa Ek Dharmik Vivechan by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सादित्य क्या दें! १३ साहित्य के प्रस्तुत लक्षण के विधय में यह श्रारपत्ति की जा सकती है कि यद आवश्यकता से श्रधिक संकुचित दोने के कारण साहिप्प और अब्याप्ति दोष से दूपित है। इम यह भान भी लें कि विड जिस किसी रचना में मनोवेगों को प्रशुदित फरने कहीं शक्ति हो, वद सादित्य है, कया विपतीत रूप से दम गइ भी दह सकते है कि जो सी रचसा रादित्यपदसाक्‌ है, उसमें मनोदेगों को त्वरित फरने की शक्ति शनिवाय रूप से रदहनी चछाद्दिए।सब जानते हूँ कि इतिहास सादित्य के अधान शअ्रंगों मे एक है | किंतु इससे पाठक मनोवेगो का प्रशुदन नहीं होता! यद्द तो जीवन-चेत्र मे घटी हुई घटनावलियों का लेखामाप्र है; भौर रादित्य का उपयु ल्य इ5 पर नद घटता । फनतः साहित्य फा उर लकच्तण वास्तय म कविवा का कंसण' है, साहित्य-सामान्य का नहीं । श्स आप फे उचर में हम यही कहेंगे कि जो भी रचना साहिरिपिझ है, उसमें मगोपेगों को श्रोरीक्ित হাসি को शक्ति का होटा अनियाय ই। হম হবিকাও को सादिप्य उसी सांमा दक कहेंगे जहाँ तक कि षट अतीत घटनओं की आइचि रता সা মা हमारे मन को भावनाओं को शुश्णयुदाता हो, हमारे मन में आनन्द्मरी उपशब्युपल मचा देता हो। इंदिद्वास के थे ऋंश, जिनका एकमा लक्ष्य धंटनाइलियों की प्राषूनि इण्न है, रादिरय महीं, चित्र फोरे लेते मात्र ३ं। ऐविदामिंद इलाझर छा सफलता या असफ़रता इस बात से परखों आती है डि बट बहा तक स्तर के उन गुणों को, भ्र्षात्‌ बए्य॑ पतनाथों की सप्यदा उनको पूर्शता और उठती अरनों पद्रात-शात्मदा को--शिनका দু भी दतिहास में होना ऋनिवायरूपेण घावर॒रक ऐ>«मन॒प्प के उन मनोदेगों के साथ श्वय কয জিন আতা है, जो उरे धारा तिद घटनाओं के मूल ग्रौठ हैं




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now