मेगास्थिनीज का भारतवर्षीय वर्णन | Megasthinej Ka Bharatvarshiya Varnan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
155
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ 1 मेगास्पिनीङ |
जी छन्वर तो [एक दूसरे से] घर यद कर दें पर नदियों फे समुद
উ सब पक रूप से ढके हैं। भूमि का झधिक भाग सिंचाय में हैं।
मतएच उसमें एक वर्ष के भीतर ही दो फसल पैंदा द्वोती हैं। इसके
सिधाय यद्द सब प्रकार और सव पारिमाण के बल और डोलडोल
के जन्तुमो-मदान फे चापायो और आकाश के पक्षियों से भरी है ।
यहाँ दाथियों फी बहुतायत हैं जोकि बढ़े विशाल शाकार फे दोते
हैं; यहाँ फी भूमि पाने की सामिग्री इतनी मधिक बडुतायत से अदाम
फरता दे कि चद श्न जन्तुर्मो को उनसे फहीं आधिक वलू में ঘকা
ইলী ই জী शूलिविया [119} म पाए जति हं । चकि ये मारत
चरथो दाय संख्या में वहुत से पकड़े जाते हैं और युद्ध दे लिये
सिखा जाते हैं इसलिये विज्ञय का पह्ला फेर देने में ये वड़े फाम
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के दोते दें!
(३६) इसी प्रकार निवासी लोग निर्याद्द की सब सामग्री
बह्ुतायत से पाकर प्रायः मासूकी डील डौछ ले आधिक होते दे
लौर अपनी मर्या र्णा के लिये भनिद्ध होते है । थे कलम कीशल
में भी बड़े निपुण पाए जाते हैं; जैसी कि ऐसे मनुष्यों से झादा की
जा सकती दै जो स्घरछ घायु सांस लेते हैं मौर अत्यन्त उत्तम जल
पांन करते हैं | भूमि ती अपने ऊपर हर प्रकार के फल जो षी
সায়া जाने गए ईह उपाती ही है, पर उसके गर्भ में मो सब
प्रकार के धातुझे को अनगिनत खानि ह; क्योंकि उसमे सोना
भौर चांदी बहुत होता ই, লামা मौर छोहा भी फम नही, भौर
जस्ता और दूसरे धातु भा होते हैं जो व्यवदार और आभूषण
की यस्तु तथा ऊूडाई के हथियार और स्वाज इत्यादि वनानिके
निमित्त काम में लाए जाते हैं ।
अनाज ( (०४४ ) फे झतिरिक्त सारे भारतवर्ष में जो नदी
नाली की वहुतायत के कारण भली धरकार सींचा रहता है, ज़ुआर
इत्यादि भी बडुन भैदा देता है; और अनेक प्रकारः की दराल,
चावल और वास्फोश्म ( 505%0000॥ ) कहलानंचाऊछा एफ
पदार्थ तथा और वहन से खाद्योपये।गी पौधे उत्पन्न होते हैं जिन
# लित्रया-मष्य अफिका का प्राचीन नाम |
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