समाज शास्त्रीय हिंदी समीक्षा | Samajsastriya Hindi Samicha

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Samajsastriya Hindi Samicha by नत्थू सिंह सेंगर - Nathu Singh Sengar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पीठिका पर खींचकर व्यक्ति तथा समाज के जीवन में सामन्जस्य तथा सतुलन बनाये रखते हैं। वह मानव इतिहास के इस प्राणवन्त स्थाई तत्वों को सामने लाकर हमारे लक्ष्य को अधिक मूर्तस्य और दृष्टिपथ को विस्तार तथा व्यापकत्व देते हैं। प्रो0 चौहान लेखक के सामाजिक सूत्रों के प्रकाश एवं परम्परा के समन्वयात्मक ढाचे पर बल देते हैं। प्रगतिवाद की. विचारधारा उन्हीं परिस्थितिजन्य अपीलों के समान हैं, जैसे कि प्राचीन परम्पराओं और प्रभाओं का _ सुदूर वर्तमान तक अस्तित्व है। प्रो0 प्रकाश चन्द्र गुप्त का अभिप्राय साहित्यिक मानों की संकीर्णता, रूढ़िग्रस्तता प्रगतिशील जीवन सापेक्षता के समन्वयात्मक ढंग की ओर संकेत करता है। वे लिखते हैं-“जब हम किसी कलाकार की युगान्तकारी कृति अपने रूढ़िवादी अधपके विचारों से जांचते हैं तो इतिहास को यादकर हमें कुछ रूकना चाहिए। संस्कृति की पारस्परिक रूपरेखा सामयिक साहित्य में युग-विशेष और समाज विशेष के अनुकूल ढल जाया करती है | डॉ0 झन्दथ नाथ गुप्त ने प्रगतिशीलता की भावी सम्भावनाओं पर प्रकाश य हुए . अतीत के वैभव का स्मरण बनाये रखा है| थी सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्रीय निर्माण के महान. उद्देश्य से « « प्रेरित सफिर्थार ही अपनी परम्परा के अनुकूल महान साहित्य की रचना कर सकते हैं। राष्ट्रीयता की रक्षा साहित्यकार तब कर सकेगा जब उसमें गुणात्मक निधि होगी । राष्ट्रीय भाव या स्वार्धीन .परक चिन्तन को सभी की प्रगति के लिए बराबर हामी भरने वाला बताया है। हमारे देश में जनवादी ढंग से समाजवाद की स्थापना को अपने राष्ट्र का लक्ष्य बनाया गया है। प्रो0 चौहान ने




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