पदमावत | padhamavat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
1047
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)?9 पदमाक्त
दृष्टि से विद्वाच् सब देशों के प्राचीन काव्य ओर साहित्य के संशोधन प्रौर पुनः मूल रूप के
प्रतिष्ठापन का कायं कर रहे है 1 इष सवंभान्य पद्धति के निदचत तियम हैं। श्री माताप्रताद
जी ने कोई चमत्कार या जादू नहीं किया। उन्होंने उपलब्ध हस्तलिखित प्रतियों की
छानबीन करके पाठ शोधन की वेज्ञानिक प्रणाली से पाठ का निणंय किया है । साथ ही
जो पाठांतर थे उन्हें भी यथा संभव टिप्पणी में उद्धृत कर दिया है। जब भी कभी कोई
विद्वान् परमाबत या प्न्य किसी ग्रथ के पाठ-निर्णेय का प्रश्न हाथ में लेगा उसे इसी
पक्ति का प्राश्रय लेना पड़ेगा । सौभाग्य से पदमावत की प्राचीन हस्तलिबित प्रतियाँ
पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं भौर खोज करने पर झ्लौर भी मिलने की संभावना है ।
श्री गुसजी ने सोलह प्रतियों के प्राधार पर पाठ-संशोधन का कार्ये किया था, जिनमें से
पाँच प्रतियाँ बहुत ही भ्रच्छी थीं। उनमें से चार प्रतियाँ लंदन के कामन वेल्थ रिलेशन्स
भ्राफिस में हैं ( संकेत पं ० १, तृ० १, तु० २, तृ* ३) | पाँचवों प्रति श्री गोपालचन्द्र जो के
पाप्त थी ( संकेत च० १ )। यह इस टीका के लिखते समय मेरे सामने भी रहो है ।
इघर पटना कालेज के प्रोफेधर श्रीहमन प्रमकरी ने बिहार में पदमा।वत की दो प्राचीन
प्रतियों का पता लगाया है| उनका মী कुछ उपयोग मैं कर सका ।
एक मनेर शरीफ के खानका पुस्तकालय की फारसी लिपि में लिखित प्रति है। इसमें
येग्रथ हैं--जायप्ती कुत 'पदमावत', 'अ्रखरावट' शोर 'कहारा नामा' जिसे गृसजी ने 'महरी
बाईसी कहा था । इसके प्रतिरिक्त इसमें पश्रवधी के अन्य काव्य भी हैं, जैसे बक्सन-कृत
बारहमासा', साधनशुत मेना सत , वृरहान कृत श्रद्िल्ल. छन्दमे 'षड्क्रतु बणंन' तथा
किसी ग्न्य कवि कृत 'विषोगमागर' । श्रलरावट और वियोगसागर की पृष्पिकाओं के
प्रन्त में सन् ६११ हिजरी है जो जायमी के समकालीन मूल प्रति की तिथि रही होगी ॥
श्री प्रसकरी के प्रनुसार यह प्रति सत्रहवों शर्ती में शाहजहाँ के समय में लिखी गई थी।
पाठ की हृष्टि से मनेर की प्रति काफी उच्च श्रंणी की है घौर वह गुप्त जी द्वारा
निर्धारित पाठ का व्यापक समर्थथ करती है। इस मूल प्रति की एक प्रतिनिषि पटना
विद्वविद्या लय ने कराई है जो कुछ दित के लिये मुझे भी देखने को मिल की ।
दूसरी बिहारशरीफ खानका पुस्तकालय की प्रत्ति ( फारसी लिपि ) है। यह ११३६
हिजरी या सन् १७२४ में मुहम्मदशाह बादशाह के राज्य-संवत् के पांचवें वर्ष में लिखी
ग्ई थी। यह प्रति श्री प्रो० प्रसकरी की कृपा से मुझे देखने को मिली, पर उस समय
जब इप टीका का अधिकांश भाग छप चुका था। फिर भी ग्रंथ के प्रन्तिम साग में शौर
शुद्धि पत्र में इसके पाठों से मैं लाभ उठा सका। प्रति संपूर्ण भ्रौर सुलिखित है भौर
'पाठ की हृष्टि से मुल्यवाच् है ।
इन दोनों के समान ही उत्तम एक हस्तलिखित प्रति मुझें रामपुर राज्य के
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