सौरीसुधार [भाग 1] | Sorysudhar [Bhag 1]

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Sorysudhar [Bhag 1] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२३२ सौरोसुधार । होते फिर कतेंठय का विचारा विचार करने के जिये ज्ञान शक्ति का प्रभार होना असम्भव हो है । बालबिबाह के ही कारणा अनेक दोष सन्ताने में आज देखने में आते है। दुर्बलता, अल्पाय, सखेता इत्यादि दोष बाल्यबिवाह तथा स्त्रिये की गभाधोन नियम मम्बन्धों अज्ञानता फे कारण है।ते हैं। किसो पाश्यात्य विद्वान का बचन है, 8 1601 11508 17010100007 (01) 10300101110 অঘান্‌ “লানলীলা ই अधिक फिसो जाति को उन्नति नहीं हे। सकसली” भयवा लानि की चन्ननिहोना मा केऊपर निभेर है। अनएव हमार यहां जे साता पिता अपनेङेटेर टडकेलष्किया का बिवाह कर नाती खेलाने का हौमला रण्पते हैं, लथा इसे वे अपना कतेठय समभते है, वे भूल ही नह” करते वरन अपने बश की अवनति करते है । जब तक लड़के लडकिया के स्वावलम्धन तथा सन्तानेात्पति फे भार का अच्छी तरह मसफ़ने तथा कार्य साधने की शक्ति पणं नहो ज्ञाय तष तक उनका ष्म फायमे प्रदत्त होना योग्य महों। सनन्‍्तानेत्पति के लिये हष्ट पुष्ठ आराग्य हाना अत्या- बश्यक है | उपदुश (गर्म) रोग वाले स्त्री परुप को मतान उत्पन्न न करना चाहिये, क्योकि इसका शमर सन्‍तान पर फ्री पड़ता है, इसलिये वह्‌ सन्तान अच्छी तरह आरगेस्य कभी नही रह सकती । उत्तम बीय्ये अयोग्य खेत में पडनेसेक्तीण है। जाता है, एवम्‌ जीणे बोरय भी रुत्तम खेत व खाद द्वारा पुष्ट हो! सफता है, हमारे पूर्वेज इच्छा नुसार रूपवान्‌, बलखान्‌ ज्र प्रतापो सन्तान उत्पल्न करते थे। महाभारत फे प्रतापी भभिमन्य बालक हमारे आदश हैं, जो गर्भ से ह्वी उत्तम ९६




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