अरण्य रोदन | Aranya Rodan

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Aranya Rodan by सुवास दीपक - Suvas Deepak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बरण्य रोदब / 17 पड़े रहते थे और अब इन ऋषि-मुनियों का स्थान बुद्धिजी वियों ने ले लिया है। कहा नही जा सकता कि यह सौभाग्य है या दुर्भाग्य । यह अन्तर्मुखीपन देश को अन्दर ही अन्दर से खोखला बनाता रहा है । ऋषिजन आँ मदे बठे रहे, आक्रमणकारी आए और शासक बन बैठे । दिल्‍ली के सिंहासन पर विभिन्‍न हस्तियां बैठी, उन्होंने अपनी भहानता के डके बजाए, महल- बगीचे खड़े किए, प्रेम के उदाहरण दुनिया के समक्ष प्रस्तुत किए, पर देश की भाम जनता के चेहरे का सूखापन सलामत रहा। उस पर कोई रौनक नही भाई, कोई हरित कान्ति नही इई ! ** कहने का तात्पयं यह है कि इस प्रकार चलता रहा। भारत स्वतत्र हुआ बयोकि गुलाम था। यदि गुलाम नहीं होता तो स्वतन्त्रता दिवस मनाते ही क्यो ? अपनी सरकारें बनी। योजनाएं रेंगती रही । शिक्षा पद्धति जवाब मंकाले ने शुरू की थी जिससे आज तक हम चिपके हैं। बिपकने में हम काफी आगे है। कितने वफादार हैं हम | स्वतन्त्र है, अपना देश है, गोरवपूर्ण इतिहास है जो प्रुस्तकालयों में दीमकों और तिलचदूडों का आहार बनता आ रहा है । भौर इसी शिक्षा पद्धति की गौरवशालो परम्परा को बरकरार रखने के लिए देश की सरकारें अतिवद्ध हैं। इसे स्वाभिमान की सीमा तक बरकरार रखकर और उसी की बैसाखियों के सहारे चलते एक दिन हम अध्यापको को यह पता चला कि सेठी साहब इन्सपेक्टर हो गए हैं। जव यहे समाचारं पाठशाला मे पहुंचा तो उस समय ट्टी का समय हो रहा था। कुछ शिक्षक घटी लगने से पहले टीते के मीचे पहुंच चुके थे । ये ऐसे शिक्षक थे जिन्हे न तो ऊधो के लेने मे दिलचस्पी थी न माघो के देने मे। वे छात्रो की तरह घंटी की प्रतीक्षा किए बिना ही कक्षाओं से निकल कर गेट तक पहुच चुके होते हैं। पर भाटिया डोयरे भर नाथ जैसे कुछेक चमचे थे जो छुट्टी के वाद भी रुक जाते थे । भाटिया सेठी साहब से अपना काम करवाने अथवा सेठी साहब साटिया से कास लेने में एक-दूसरे से तिगड़मवाजी लगाते थे। डोगरे मिस लिपस्टिक के साथ कुछ समय तक फिल्मी रोमास लड़ाता था ! जब इन्ही चमचों को सेठी साहद ने बड़े इत्मीनान से अपने इन्मपेक्टर




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