टूटती नालंदाएं व् अन्य | Tutti Naalandayein V Anya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राकेश
आचाय
राकेश
आवाय
टूथ्वी नाल दाए. १५%
(तम्बी सास्त लक्र) इतिहास साक्षी है कि सत्य का हर युग
में अग्नि परीक्षा दती पडती है | ईसा का सत्य के लिए सूली पर
चढना पडा सुकरात वा जहर पीना पडा ग्राधीजी को प्राणो
की आहुति दनी पडी, फिर हम तो ह हो क्या ? (जाचाय बीच
वाली कूर्सी पर बैठ जाते हैं)
वह तो सव ठीक है जाचाय, पर इन बच्चो वे पीछे राजतीति का
काना हाथ है, छिछली राजनीति नं उ हं उकसाया है । अगर एस
हालात में हमर उनकी मार्गें मान ली तो यह सरस्वती का मदिर
भी राजनीति के दलदल म॑ डूब जाएगा। समूचा राष्ट्र इस
राक्षसी राजनीति की श्मशानी जाग से सुलग उठेगा । सुनहरे
भविष्य की सुनहरी फसले इस आग मे झुलस जाएगी जाचाय !
(राकेश आचाय क॑ पास जाता है)
(आह छोडकर, गभीरस्वर मे) आप ठीक कह रे दै राकेशजी ।
राष्ण की इस केसर की क्यारी म यह जहर नही घुलना चाहिए
वर्ना सारा चमन जहरीला हो जाएगा । पर यह ता स्वाथ म डूबी
राजनीति को सांचना चाहिए कि राष्ट्र वी साम्रो मे जहर न
घात 1
(आचाय खड होकर बचनी से घूमन लगत है)
(पीछे पीछे चलते हुए) जिनकी सासें ही विप-भरी हां, जिनके
प्राण ही स्वाथनीति से घडकते हा व॒तो हर जगह जहर हो
फलाएग। पश्चिमी सभ्यता की सकर औनादे जीवन सागर म
जहर के सित्राय मिला भी क्या सकती हैं? और
(बीच मे ही) जय मधत से जीवन सागर से स हलाहल निकलगा
ता उमर पीत पचाम के लिए कसी न कसी को तो विपपायी
লীলক্ষত वनना ही पडगा, वर्ना यह विप इस घरती को उजाड
दगा, सप्ट कर दगा, वीरान कर डालेगा। राकेशजी यह काय
शिक्षक्र को ही वरना पडेगा क्याकि हम ही राष्ट्र निर्माता है
भविष्य के द्रप्टा हू और বতলান ন লচ্তা ₹।
(पास आते स्वर--हमारी मागे, पूरी हा 1 आचाय
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