चैतन्यचन्द्रोदय प्रथम काण्ड | Chaitanyachandrodaya Pratham Khand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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`, वेराग्प्रकरण। ३ चो ० | तातेपरृत भापहिदेखी । प्रय करनचाहष्ं यहि पेखी.॥ धावत चित मंगजल जग माहीं । धों याहिते स्वतन्त्र है जादी ॥ सचराचर सवही शिर नाह । अतिध्रारत युत विनथसुहाईं ॥ चाहों दद वरदान न आना । सनह सकल षिनती रेकाना ॥ प्रथम रृपाकरि करिय उपाईं। जिमि ममझाश पूर्ण हेज्ाई ॥ বু याहि रचत भ्रम नासा। विपय विराग होड़ অল্যাজা ॥ सि सुन्दर वेदान्त सुजाना। आदर करहि सन्त गुणवाना ॥ हुक चूक खि यामह ज्ञानी । करोथ न करहि वालमतिजानी ॥ : दो०। लहिंहें जे ज्ञानी पुरुप वॉचिबाँचि भानन्द। देखिदेखि हँसिहेंबहुत याकों खल मतिमंद ॥ सो०। सत्‌ चित्‌ नंद रूप जो आत्माहै ताहि मम्त। | नमस्कार है सूप फे सोहे सत्‌ चित्‌ भनद॥ छ ० राम । फहवासो । सबजासों ॥ यदहभासे । जगभ्रासे ॥ अरु जाही। सवयाही॥ मिलिजावे । धिति पत ॥ दो ०। नमस्कार तिहि भात्मा को भरु ज्ञाता ज्ञान । ज्ञेय अपर द्रष्टा बहुरि दरशन दृश्य সমান ॥ चो० । कर्ता करण क्रियाहिज़ोई | जासों सिद्धि होतहे सोई॥ ज्ञान रुप भात्मा जो ऐसा। नमस्कार है ताको केसा॥ जिसभानंद जलधिक कणकरि। आनंदित सम्पर्ण विश्वभरिं ॥ अरु वहोरि आनंद करि जाही। सब जीव जग यावतं भाही ॥ झानेद रुपात्मा को ताही। नमस्कार वारम्वाराही ॥ एक सुतीद्षण नाम को गेऊ। होत शिष्य अगस्त्य को भेज ॥ तशय यकृ तफ मन माहीं । उपजी ताके निहत काही ॥ गमनकियो भ्रगस्त्यफे धामा । स्थितिभेकरि पिधिसहितप्रणाम॥ दो ०। अपर नम्नता भावंसों कीन्द्यों प्रश्न रसाल । जोसनते गदगदभयो मनिम्तन भधिकदयाल ॥ चो०।तथ सुतीदषणकंह हेभगवाना । सबतत्त्वज्ञञाख सबजाना ॥ ` संशय यफ़ मोरे मेन माहीं।निद्ृत करों रूपा की बाहीं॥




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