चैतन्यचन्द्रोदय प्रथम काण्ड | Chaitanyachandrodaya Pratham Khand
श्रेणी : जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)`, वेराग्प्रकरण। ३
चो ० | तातेपरृत भापहिदेखी । प्रय करनचाहष्ं यहि पेखी.॥
धावत चित मंगजल जग माहीं । धों याहिते स्वतन्त्र है जादी ॥
सचराचर सवही शिर नाह । अतिध्रारत युत विनथसुहाईं ॥
चाहों दद वरदान न आना । सनह सकल षिनती रेकाना ॥
प्रथम रृपाकरि करिय उपाईं। जिमि ममझाश पूर्ण हेज्ाई ॥
বু याहि रचत भ्रम नासा। विपय विराग होड़ অল্যাজা ॥
सि सुन्दर वेदान्त सुजाना। आदर करहि सन्त गुणवाना ॥
हुक चूक खि यामह ज्ञानी । करोथ न करहि वालमतिजानी ॥
: दो०। लहिंहें जे ज्ञानी पुरुप वॉचिबाँचि भानन्द।
देखिदेखि हँसिहेंबहुत याकों खल मतिमंद ॥
सो०। सत् चित् नंद रूप जो आत्माहै ताहि मम्त।
| नमस्कार है सूप फे सोहे सत् चित् भनद॥
छ ० राम । फहवासो । सबजासों ॥ यदहभासे । जगभ्रासे ॥
अरु जाही। सवयाही॥ मिलिजावे । धिति पत ॥
दो ०। नमस्कार तिहि भात्मा को भरु ज्ञाता ज्ञान ।
ज्ञेय अपर द्रष्टा बहुरि दरशन दृश्य সমান ॥
चो० । कर्ता करण क्रियाहिज़ोई | जासों सिद्धि होतहे सोई॥
ज्ञान रुप भात्मा जो ऐसा। नमस्कार है ताको केसा॥
जिसभानंद जलधिक कणकरि। आनंदित सम्पर्ण विश्वभरिं ॥
अरु वहोरि आनंद करि जाही। सब जीव जग यावतं भाही ॥
झानेद रुपात्मा को ताही। नमस्कार वारम्वाराही ॥
एक सुतीद्षण नाम को गेऊ। होत शिष्य अगस्त्य को भेज ॥
तशय यकृ तफ मन माहीं । उपजी ताके निहत काही ॥
गमनकियो भ्रगस्त्यफे धामा । स्थितिभेकरि पिधिसहितप्रणाम॥
दो ०। अपर नम्नता भावंसों कीन्द्यों प्रश्न रसाल ।
जोसनते गदगदभयो मनिम्तन भधिकदयाल ॥
चो०।तथ सुतीदषणकंह हेभगवाना । सबतत्त्वज्ञञाख सबजाना ॥
` संशय यफ़ मोरे मेन माहीं।निद्ृत करों रूपा की बाहीं॥
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