कर्त्तव्य | Karttavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
अयमान कदु वे ही लेग कर सकते है. जे उन देशों के इति-
हास और परिस्थिति आदि से भली भाँति परिचित हैं।
ऐसे सिद्धांतों से मलुष्य, समाज, जाति और देश मे श्रनीति
और अनाचार की ही वृद्धि होती है ।
इन सब दोषों से बचने का एक मात्र उपाय यही है कि
मनुष्यों के उनका कत्त द््य बतलाया जाय । कत्तव्य-पालन से
सदा खुख और समृद्धि की हो सृष्टि होती है । एक जर्मन
विद्वान का कथन है--/जीवन भ॑ यह बात विशेष ध्यान रखने
योग्य है कि जिस समय दम सुख या दुःख की कोई परवा
नी करते श्चेर दटृत्तापूचंक केवल अपने कर्तव्यं के पालन
में लग जाते है, उसः समय सुस्त की खष्टि आप ही आप--
बल्कि अनेक प्रकार के दुःखो श्रौर चिताओं के मध्य में भी--
है। जाती है |” प्रसिद्ध विद्वान गाये का मत है कि सब से
अच्छा शासन वही है जो हमें अपने आपके चश में रखना
सिखलाता है । प्रसिद्ध तत्तवेता प्लूटाक ने राजा गौजन से
বা আভল अपने शासन का आरभ अपने हृदय में ही
करो और उसकी नीव अपनी वासनश्रौ के वशीकरण पर
डालो” । इन वाक्यों से आत्म-संयम, कत्त व्य-पालन और
मनोदेवता की महत्ता मलो भोति सिद्ध होती है!
जो कायं केवल श्रपने लाम या सुख के विचारसे किप
जाते है, उनकी ्रपेत्ता वे कार्य कहीं अधिक उत्तम होते हैं जो
भेम या करुणा की पेरणा से श्रथवा कर्तव्य-पालन के विचार
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