गीता के अनुसार जीवन मृत्यु का स्वरुप | Geeta Ke Anusar Jeevan Mritu Ka Swarup
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
665 KB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१७)
है। वह अतर्क्य विषय परमात्माकी कपासे ही जाननेमें आ
सकता दे । उस तत्वको यथायरूपसे जाननेका सरहू उपाय उतत
परमात्माकी शरणागति है । इसमें सबका अधिकार है। भगवानने
कहा है ।-
मां हि पार्थं व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः ।
खियो वैश्यास्तथा श्धास्तेऽपि याग्ति परां गतिम् ॥
(২1২৭)
शी, वैद्य ओर शूद्रादि तथा पापयोनिवाङे भी जो कोई
हये वे मी मेरे शरण होकर तो परमगतिको ही प्राप होते है ।-
आगे चलकर भगवान्ने स्पष्ट कह दिया है कि--
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत।
तत्मरसादात्पसं शान्ति स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्॥
(१८। ६२)
षे भारत ¡ सव प्रकारसे उस परमेश्वरकी ही अनन्य शरणको
ग्राप्त हो, उस परमात्माकी कृपासे हो परमशान्तिको और सनातन
परमधामको प्राप्त होगा ।” वह परमेश्वर श्रीकृष्ण ही हैं, इसलिये
अन्तमें उन्होंने कहा-
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं घज 1
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
( १८। ६६ )
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