गीता के अनुसार जीवन मृत्यु का स्वरुप | Geeta Ke Anusar Jeevan Mritu Ka Swarup

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Geeta Ke Anusar Jeevan Mritu Ka Swarup  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७) है। वह अतर्क्य विषय परमात्माकी कपासे ही जाननेमें आ सकता दे । उस तत्वको यथायरूपसे जाननेका सरहू उपाय उतत परमात्माकी शरणागति है । इसमें सबका अधिकार है। भगवानने कहा है ।- मां हि पार्थं व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः । खियो वैश्यास्तथा श्धास्तेऽपि याग्ति परां गतिम्‌ ॥ (২1২৭) शी, वैद्य ओर शूद्रादि तथा पापयोनिवाङे भी जो कोई हये वे मी मेरे शरण होकर तो परमगतिको ही प्राप होते है ।- आगे चलकर भगवान्‌ने स्पष्ट कह दिया है कि-- तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत। तत्मरसादात्पसं शान्ति स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्‌॥ (१८। ६२) षे भारत ¡ सव प्रकारसे उस परमेश्वरकी ही अनन्य शरणको ग्राप्त हो, उस परमात्माकी कृपासे हो परमशान्तिको और सनातन परमधामको प्राप्त होगा ।” वह परमेश्वर श्रीकृष्ण ही हैं, इसलिये अन्तमें उन्होंने कहा- सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं घज 1 अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥ ( १८। ६६ )




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