बन्दी | Bandi

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Bandi by कपिलदेव नारायणसिंह "सुहृद" - Kapildev Narayan Singh 'Suhrid'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उनकी समर-कला से विचलित सा हो गया झुदीक्षित का दल। किन्तु, उसी क्षण सेनापति ने दिखलाया अञुप्म रण कौशल ॥ वीर सुदीक्षित ने ज्वाला की लाल लाल लटो सा वद्कर। कर गणित आधात क्रिया भय कस्पित्त रि-मरडल जो पल.भर ॥ अगणित खरिडित रुण्ड मुण्ड से पाट दिया समरस्थल क्षण में ! उसके स्नाय याघारतो- से खलबली मच गई रण में॥ किन्तु, ओज संस्फृर्ति शौय्ये से | अरि भी इए युद्ध में तत्पर । धा दुर्भाग्य देश का, सैनिक सद न सके याघात उभम्रतर ॥ सुच्ड सैनिकों रो रखने में विफल हुए सेनापति के সল। भाग चली सेना स्वदेश की द्ड गया अतुलित वल संयम ॥ तीन




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