हिन्दी नवजीवन | Hindi Navjivan

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Hindi Navjivan by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शर्े अशलल, १५२४७ जननमकयनन्यणन 0 भावव क ही अब». डे ৯৮ লা শত আশার ¬ ~ ~ পিপি তা काम शक्ति का दुव्येय ? गत मद साप्त के “वेलफेशआर ! नामक अंगरेजी पत्र के एक छेख की और एक मित्र ने मेरा प्यास खींचा हैं, जोकि श्री एम. एस, राय का लिखा हुआ है ओर जिसमे उन्होंने कोकनाडा की खादी-प्रदर्शिनी के उद्घाटन के , अवसर पर की हृदं पाचनं राय की वफ्तता की आलोचना की है । मेरे कागज-पत्रों में सस छेग्व की प्रति कोछ दो मद्दीनों से रक्खी हुई थी । खेद हे कि मे उसे अबतक मे पढ़ पाया था 1 पढ़ चुकने के बाद ऐसा मास हुआ कि आवार्य राय के विचारों का श्री एम, एन, राय हारा किये सभे संन का खण्डन मेरे छेसों ४ कई घार आ चुका है | पर पाठकों की स्मृति अल्पजीयी हती हि, इषि अच्छ दोगा कि फिर एक बार यहाँ मे अपनी युक्तियों को सिझसिल्लेवार पेश कर द्‌. भवान राय के ये आलहाबक महाशय मानने है कि चन्ये के किए जो इतना उद्यम किया जा रहा है से महज “शक्ति का बुर््यय ६ । आचाय राय करी दलो षा मुख्यांण यह है कि শন खाक कर किसानो के क्ति अपना एक सन्देश रखता है ओर वट गह करि ` तुम मेरे द्वारा अपने फुरसत के ब्त का सदुषगोग करे सकते द ।' पर श्री राय को कहना £ हि मानों के पास फुरसल का वक्त होता हैं। नहीं । और जो कुछ फुरसत में रहतों है उसकी उन्हें जरूरत भी ४। यदि चार महीने कुरसन उन्हें रहती दे तो इसकी वजह यह द्व कि से आठ मर्हीनो तम दद से ज्यादद काम करते हे कोर अगर इन फुरमत के ४ महीनों में भी उन्हें चरखे पर का। करना पढ़े, दी रस आठ मद्दीनों भरें काम करम षी उनकी कृषत दर साझ कस दोनी जायगी 1 ওলব दाब्दों में कहें लो आलोचक मह्ाशय की राय में भारत के पास चरा कातन का सम्रथ मंद्टीं है । पेमा आनि पदता ६ कि হা মাহা के »ारत के किसानों का तजरित्रा बहुत ही कस हैं। पर से से इरा बात का चित्र ही अपनी आँखों के सामने खड़ा कर पाये ने कि चरसश्ा क्रिस त्तरहु दाम फैरेगा--नहीं, आग भी कर रहा ढे। किसानो को चरखे का गुलाम हो जाने की जरूरत नहीं है। बल्कि उसके जर्ये कडो লি্গখাণ के बाद किसानों को बडी तफरीह का मौका मिलता है । इसे उनका दि ग्विल उटेगा। हां, भारत की महिलाओं का अजलबभे यद्द स्थायी वस्तु के रूप में भट्ट किया गया हैं। वे जब अब मोका पेमा चरखा कातेंगो । यदि अधिकाश मिहनत-मजदुरा अर्थात धारीरिझ भ्रम करने वाहे छोग ओसतन्‌ सिर्फ आधा यण्दा रोज यरखा काते सो न फेंवल अपने छिए काफी सत कान “कगे बह्कि औओरों के छिए भी बचा सकेगे वह धारुस कम से कभ २ १-५१-० दर साल अधिक #मावेगा- जोकि फुरसत के बक्त की ऋमाई के खयाल से कम नहीं | इम बात को सब लोग मानने हैं कि आज भारत में द्वाथ-करये ओर जुलादे ता (तनी तादाद में নীতা কি हमारी जश्यत का समाम कपडा बन सकते ठै. एसी हारत ञं सवाक सिर्फ सृत-कताई का द्वी रद्द जाता है। यदि किसान भाई इसे अपने हाथ में के लें, तो बिना ही बहुतेरी पूंजी लगाये भारत के बख्र-म्वातन्म्य फा सवार बात की बात में हल हो सकता ६ । इसके मानी यह होंगे कि कम से कम ६७ करोड़ देपया उसने करोड़ों सृतकारों, दजारां घुनिय्राओं, ओर जुलाहों के अन्दर आता-जाता रहेगा, जो कि अपनो झॉँपदडी में चैट ये काम करगे भौर उसी दद तक किसानों की आमदनी बढाने री भरता मी बढेगी। तम्माम दुनिया का यरद्र तजरिशा है कि किसानों के सिए एक ऐसे पन्ने क्री अल्‍्रत रहती है जिससे बह फुरसत के समय में 'विल्दी-मयजीचत १३ स দলটি পা मनन. শি -* ~=» ~~ আপিল সপ পদ व मिनि + ক তে कुछ कसाई कर सके-अपनी आमदनी चढ़ा सके । इस भोके पर थद्द बात हरगिज न भूल जाना चाहिए कि আবে दिनों की बात नहीं हैं, भारतवर्ष की महिलायें उसके कपड़े के लिए फुश्सत के यक्त मै चरला कात कान कर्‌ सुन देती थीं। ओर चरते के इस কাজলা मे तेः इम बतत कौ सन्यना ठ) ঘর্থী अच्छी तरह प्रदर्शित कर दिया है । यह स्याल न्ना मर्त हैं कि यरे की हैल- चछ अंसफल हुई । हा, फार्यकर्ता भल्बसे कृछ अभो म काम न करे पमि £; रेक्रिन जहां की उन्होंने दिल छा कर काम किया हैं बद्ां बराबर चरखे का काम बल লা 2) हा, यह बात क्षय है कि अभी उसकी जड नहीं जम पाई है । इसका कारण दे व्यवस्था ओर संगठन की अपणेता । एक कारण यह भी है कि सुतकारों को अभी यह यक्रीन नहीं हो पाया है हि हमें काम निरंतर मिलता रहेगा । में श्री. राय को आदाहम करता हुं कि ये पजाव, कफरनाटक, भान्धर आर ताभिर नाड के कुछ द्िस्सों का अचर्ल:कन ओर मनन करें ओर से शुरु चेख लेगे कि चरग्वे में कितनी करामात हैं । भारतवर्ष को अकालो की भूमि हो समक्षिण । उसमें दसारे साई-बहनों के लिए कोनन्सी बाद अच्छी हैं? सड़कों पर নির্গী फोडना या रुई 'पुनकना ओर सत कातना ? जगाती२ अकालों से पीडिते रेने के कारण उद्दीसा की प्रजा मिखभमगे दाने को हद तक पहुच गई हैं । यहां तक कि अब उनसे काम छेना भी मुच्किछ ही गया ढे । वे धीरे भीरे मौत के मुद्द में जा रहे हैं । उनके शिण अगर कोई जिन्दगी की आशा! हे तो वह हैं यह चरखा । श्री राग सुधरे हुए तरोकों से खेती करने पर जोर देते ट, ठा, इसा जन्दह द पर घरमे की सजबीज क्रषि-सुधार के साधनों की मगह नहीं की जा रही हैं बल्कि उलटे चद नो ठसका अपग्रगामी अंग टै । इस सुधार के रास्ते में सारी भारी कठिनाइया हे । इसें सरकार की अनिश्छा से पार पाना होगा, प्रजी का अभाव और तीसरे नई तरोकों को अपनाने से किसानों का दता के साथ इनक करना । परन्तु चरशा-फताईं कै निष्वल तमी बातो ४! दावा क्रिया जाता हैं-- ६ १) यह न रोमां कते णक तैयार कामं देना ह. जिनं फुरसत रहती ह और दो पैसे ज्यादा कमामे की जम्श्त रहतों ६: ( २ ) हजारों लोग इससे वाकिक ६; (३) इसे आसानी से सीख सनत इ; {५} दके लिण् प्रजी की वस्तुतः भिल्कुल जरूरत नहीं ( ७, ) चेरखा आसान! से बहुत कम दाम में बन सता । बहुतिरे छोग यह भी नहीं जानते कि चातको थ। फिरको पर भी पत साता जा सक्ता है; {६ ) खोग उसे हिकारत की निम! से महु देते. { <) भकाल ओर मणी फे হিলী मे तुरन्त सकट निवारण का सबसे अच्छा साधन है; (८ ) पिलछायती कपड़े की खरीदी के रूप में हिन्दुस्तान के बाहर जाने वाहे पन-प्रः हू वन्‍द करने को आमथ्य अकेले चरने में हो हैं ( ० ) इस तरह फक्ची हुई रकम करो बेह करोर घर पहुचा देता है ( १० ) थोडी-मी सफलता भी उस हृद तक लोगों को तुरन्स फायद। पहुचाती दै; और (११ ) हागों के अन्दर सहयोग उत्पन्न करने और का सतत से अधिक समभ साधन है । इसके रास्ते में जो कठिनाइया हैं वे ये हैं-( १) मध्यम वर्ग के छोगों के मन में इसके प्रति श्रद्धा का अभाव और फैलाने गरीबों के ' পশলা ~ =




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