शिक्षा सुबोधिनी [भाग 4] | Sikshasubodhini [Part 4]

Sikshasubodhini [Part 4] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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= खाया भाग । १४ ले इस का क्या करेंगा काग बोला जो क्राम बदि से होता सो बल से नहीं ছানা জল एक खर्ट ने अपनो बहु के प्रभाव से म्रहावलो सिद को मारा लेंसे में भो रसे बिन मारे न छोडंगाः कागली बोली यह केसो कथा हे तब काग कहने लगा कि मंदराचल पर टर्टेन्ल नाम एक सिंह था बह बहत जोव जत्रा खा भारा करता । एक दन बन के सब जंतओों ने बिचार ऋर आपस म करा कि यदह सिंह नित्त आक्र एक उत खाता ओर अनेक मारता रे । इसलिये इस के पास चलकर एक्र जत नित देने का कह आये ओर बारो बाध सं पचे ते भला | ऐसे के आपस में बतियाकर सिंह के पास गये ओर हाथ जोड़ प्रणाम कर मयाद से उस के सानने खड़े भये | इन के देखकर नाहर बोला तुम क्या मांगते हो। इन्हें ने कहा स्वामों तम आहर के लिये नित जात र अधिक मारते रा अस्य खाते हा । इसलिपे हमारी यह प्राथना है कि हम लोग तुम्हारं खाने के लिये एक লন नित यहांहो पहुचाय जायंगे तुम परिश्रम मत करे । उस ने कहा बहुत अच्छा । इस प्रकार से ठे बधि से वचन कर आये । आगे जिस की पारी आल से जाता और वह खाता एसे कितने दिन पीछे एऊ शट वरदे कौ पारो आयो । तव उस ने अपने जो मे बिचारा क्षि भेरी शरोर छेाटो है उस का पेट दस से न भरेंगा सब हमारे ओर भादणें के জানেনা হু से हमारे सारे कल का एक दो पारो में नाश दोजायगा । इसलियें अपने जोतलेंदही इसका नाश करूं लो भला यह बिचार अपने स्थान से उठकर धीरें २ चलकर उस सिंह के पास पहुंचा इसे देख सिंह क्राध कर बोला अरत अखेर कर क्या आया खर्टे ने राच जाड यह कहा कि स्वामो मेरा कुछ दोष नहीं में आप के पास चला आता था गेल में दूसरा सिंद मिला उस ने मुझ से कहा अर त॒ किधर चला जात्ता




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