नेमिपुराण | Nemipuran

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Nemipuran by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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এ सिजिनके पूथभव । 4) বই प्रेमसे सेवन करते हैं। इससे वढ़ुकर और क्‍या मूखेता होगी / इसप्रकार पन-वचन-कायसे विरक्त होकर सुप्रतिष्ठने जिनभगवानका अभिषेक किया भर पको यथायोग्य दान दिया | इसके वाद अपने बड़े पुत्र सुदृष्िकों राज्य देकर उसने सुमन्दरशुनिके पास सुखकी कारण जिनदीक्षा ग्रहण करली। सत्पुरुषोंके मनमें जो वात बेठ जाती है उसे वे पूरी करके ही छोड़ते हैं । अब सुप्रतिष्ठ मुनि पाँच महात्रत, पाँच साभति और तीन गुप्तिका पढ़े आदरके साथ पालन करने खगे । रत्तत्रयफे निपिरूप इन सुप्रतिष्ठ युनिने थोडे श समयमे ग्यारह अंगो पद छिया। वे सोलहकारण भावनाओंक्ो, जो परित्रे तीथकर पदको कारण है; विचारने छग । इन भावनाओंका शा्रानुसार संक्षेप स्वरूप यहाँ लिखा जाता है। उसे आप छोग सावध[न होकर सुनिए । जिनभगवानूने जो विस्तारसहित सात तल्वोंका स्वरूप कहा है उसके श्रद्धानकों सम्परदशन कहते हैं। जैसे अक्षर-मात्रासे पूर्ण मंत्र कायेकी सिद्धिका हेतु है उसी तरह यह सम्यक्ल निःशंक्रितादि आठ अंगांस ददं हकर सब सिद्धिका देनेवाला है .। निमछ आक्राशमभे जसे चन्द्रपा शोभाको भाप्त होता है उसी तरह यह सम्यक्ल पच्चीस मलू-दोपोंसे रहित होनिपर सुन्दरता धारण करता है। जिस रत्नका साणपर चढ़नेसे संस्कार हो. चुका वह जसी दिव्य कान्ति पारण करता ह उशी तरह आठ मद्राहित सम्यक्ल २३




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