नाटककार अश्क | NatakaKar Ashk

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NatakaKar Ashk by जगदीशचन्द्र माथुर - Jagdishchandra Mathur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नाटककार अ्ररक मेहमान का शुद्गुदाने वाला चित्रण है | पर्दा उठाओ पर्दा गिराओ? वामक संग्रह के लगभग सभी नाठकों में परिस्थितियों का अनूठा चुनाव है। परिस्थिति चरित्र के अनुकूल ही नहीं जान पड़ती, बल्कि पात्रों में व्यक्तित्व का अनिवार्य प्रस्फुटन प्रतीत होती है। जैसे मैंने अन्यत्र लिखा है, जीवन की सतत प्रवाहशील घारा का ज्षणिक ठहराव ही मानो अश्क के एकांकियों में मूर्तिमान होकर उतरता है। 'बतसिया? में इस ठहराव ने भेंवर का रूप ले लिया है। शेष नाटकों में घटनाचक्र की गुत्थियाँ नहीं हैं, जीवन की शोमा-यात्रा के कुछ दृश्य सामने आते और तनिक हर कर फिर गतिशील हो जाते हैं | लेकिन इस अनायास प्रदर्शन के पीछे कितनी नैयारिरयो+ कितनी तराश, कितनी नाप-जोल है, इसका अन्दाज्ञ ममननशील पाठक और दर्शक ही लगा सकते हैं । असल में अश्क की प्रमुख विशेपताएँ हैं श्रमसाध्य और जानदार पात्रों का सुजन | उनका प्रत्येक पात्र अपनी भाव भंगिमा और वाणी के द्वारा पहचाना जा सकता है। लेखक पात्रों के मुख से अपनी प्रदत्तियों, अपनी भावनाओं का परिचय नहीं देता | लेखक का निजी व्यक्तित्व तो परिस्थितियों की प्रगति और नाटक के सामान्य प्रवाह और आधारभूत भावना में अन्तहिंत रहता है। किन्त॒ पात्र जो कुछ बोलते या करते हैं, वह उनका अपना है, वे लेखक के ही मिन्न मिन्न नक्काव नहीं ह । इस दिशा मे अश्क हिन्दी में अनूठे माटककार है} इस गुण की सिद्धि के लिए. आवश्यकता है भीषण आत्मसंवरण की; पैनी, समदर्शी दृष्टि की और मिन्न-मिन्न भाँति के चरित्रों के हृदय में पेंठकर उनसे समरस होने की क्षमता की । एक बात और । सम्बाद और कार्य-सम्पादन पात्नों के विकास के माध्यम हैं | आज हिन्दी में चुस्त और तीखे संवाद-लेखकों की कमी ---१७-- ~~ ~ সি আঃ ক পি উই




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