चित्तशुद्धि | Chittashuddhi

Chittashuddhi by देवकी - Devki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ अशुद्धि क्या ? [ सकल्पो की उत्पत्ति-पुति मे ही जीवन-वृद्धि स्वीकार करना ओर सकत्पो से अतीत के जीवन की जिज्ञासा तथा लालसां जागृत न होना ही चित्त की बशुद्धि दै) सकलल्‍्प-पूर्ति के सुख की दासता और सकलप-अपूर्ति का भय मिट जाने परं सकत्प-उत्यत्ति-पूति के, जीवन से तद्रूपता नही रहती है! तद्रूपता के मिस्ते दी चित्त स्वत शुद्ध होने लगता है । अपने से वस्तुओ का अधिक महत्व स्वीकार करना सकत्पो मे मावद्ध होना ই) অর অন্ধ रहित होने के लिए यह आवश्यक है कि सभी वस्तु से सपने को विमुख केर लिया जाय । वस्तुओं से असग होते ही चित्त स्वतः शुद्ध हो जाता दै! | । मेरे तिज स्वरूप परमप्रिय, ~ चित्त की शुद्धि का भले हो किसी को ज्ञान नहो पर चित्त की अजुद्धि का तो ज्ञान मानव मात्र को है, क्योंकि यदि ऐसा न होता तो चित्त की शुद्धि का प्रश्न ही उत्पन्न न होता। विचार यह करना है कि हमारी अपनी दृष्टि मे अपने चित्त मे क्या अशुद्धि प्रतीत होती है। जत्र हम अपने चित्त को अपने अधीन नही पाते हैं तब बह भास होता है कि चित्त से कोई दोप है। यदि हमारा




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