नवपद पूजा संग्रह | Navpad Puja Sangrah

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Navpad Puja Sangrah by यशोविजय उपाध्याय - Yashovijay Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नवपद पूजा ७ ॥ उस्लालादालाथं ॥ तीर्थ की स्थापना करने वाले और जिन्होंने चतुविध संघ की स्थापना की है, जिन्होंने दान, शियल, तप व भाव की प्ररु- पणा की है और जो धीरजवान्‌ गंभीर हैं, जिन्होंने श्रमृत रूप देशना की वर्षा वर्षाई है और जो अपनी शक्ति से कर्मो का छेद करने में पुष्ट हैं, ऐमे श्री अरिहंत भगवान को वन्दन करता हूँ ॥१॥ उत्तम निर्मल और अक्षय ज्ञान के प्रकाश से जो सववे पदार्थों के रहस्य को प्रगट करते हैं, धर्मास्तिकाय, अवर्मास्तिकाय, आाकाशास्विकाय, पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय और काल रूप पड़ द्रव्यों का जिन्होंने स्वरूप बताया हैं, आत्मम्राव में जिनकी शुद्ध श्रद्धा है, स्थिरतारूप चारित्र में जो तन्मय हैं, आत्म रमणता मे कि जिसमें केवलज्ञान प्राप्त होने के वाद 'ययास्यात चारित्र' होता रै ग्रौर वह श्रात्म स्थिरता रूप होता है, जिसमें लीन हैं, तीर्थंकर गोत्र कर्म के प्रभाव से जो ३४ अतिशय व স্সাভ সালি- हायं से सुशोभित ह, जगत्‌ जीवों के प्रति जो श्रनुकंपा वाले हें जो भगवंत हें श्रोर भव्यात्माओं को आ्राश्चयं उत्पन्न कराते हैं । प्रसंगोचित यहां ३४ अतिशयों के नाम जानना चाहिये और वे इस प्रकार हेंः-- मूल चार भ्रतिशय (१) शरीर सुगंध युक्त परसेवे-पत्तोौने




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