श्री जैन सिद्धांत बोल संग्रह [भाग-८] | Shree Jain Siddhant Bol Sangrah [Bhag-8]

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इन्द्रचन्द्र - Indrachandra

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रोशनलाल जैन - Roshanlal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९) -परिवार्‌ की दृष्टि से सेठ सा० नेसे भाग्यशाली विरले ही मिलते हैं। आप के पाँच पुत्र हैं। सभी शिक्षित, संस्कृत एवं व्या- पारकुशल हैं | सभी जुदे किये हुए हैं एवं जुदे २ व्यापार व्यवसाय में लगे हुए हैं। पाँचों पुत्र सेठनी के आज्ञाजरुवर्ती हैं एवं सभी भाइयों में परस्पर सराहनीय प्रेम है। यही नहीं आपके छः पौन्न,दो प्रपोत्र, दो पौत्री भौर दो प्रपौत्री हैं।सेठजी फे दो पुत्रियों में से छोटी पुत्री मौजूद है एवं त्तीन दोहिते और पाँच दोहितियाँ हैं । सेठजी सफल व्यापारी, समाज और राज्य में प्रतिष्ठा प्राप्त,बड़े परिवार के नेता एवं सम्पन्न व्यक्ति हैं ) आप दानवीर और परोप- कारपरायण हैं। धर्म और परोपकार के कार्यो में आपने उदारता फे साथ घन ही नहीं वहाया किन्तु तन और मन का योग भी आपने दिया है। बचपन में माता ओर बड़ी बहिनों से धार्षिक संस्कार प्राप्त करने वाले एवं धर्मस्थान पे शिक्ता का श्रीगणेश फरने वाले सेठ सदेव की प्रहृत्ति सांसारिक कार्यो के षीच रहते हुए भी सदा धार्मिक रही है। सांसारिक वभव मेँ जलकमलचत्‌ লিঝিম্ रह कर आपने नाम से ही नहीं,कर्म से भी धमचन्द का पुत्र होना सिद्ध किया है। भापने बचपन में ही श्री हुक्मीचन्द्‌ जी महाराज की सम्प्र- दाय के मुनि श्री केवलचन्द जी महाराज से धम श्रद्धा अहण की थी। आप ययूणों के ही पुजारी हैं।पंच महातव्रतधारी निर्मल आचार- वाले सभी साधु आपके लिये पृज्य हैं| आपने अपने जीवन में कभी चाय,भंग,त्तमाखू या अफीम का सेवन नहीं क्रिया । सात व्यसनों का आपके त्याग है तथा राजिभोजन का भी आपके नियम है। आपने श्रावक्ष के वारइ व्रत धारण किये हैं र जीवन फे पिछले बर्षों में आपने शीलत्रत भी धारण किया है। ग्रहण किये हुए त्याग प्त्याख्यान आप हृढता फ्रे साथ पालन करते रहे हैं।




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