कार्ल और अन्ना | Karl Aur Anna
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काल और अन्ना
दूसरे दरवाजे की तरफ! सीढ़ियों पर चढते द्वी उसने नक्काशीदार
दीवाल पर कुछ खरोंच के दाग देखे | वे नक्काशियाँ रिचाड ने
स्वय अपने लिए बनाई थीं। अमी भी वह सकोच से गड़ा जा
रहा था। उसने सोचा कि चल लौट चल, फिर पीछे आऊँगा।
धीरे-धीरे वह अतिम दो सीढियों पर चढ़ गया, चारों ओर
नजर घुमाई, एक-दो पग आगे बढ़ा। वह अब दरवाजे के
सासने था। उसने नास को पढ़ा ।
अपनी कल्पना मे उसने देखा कि अन्ना चूल्हे के सामने
कायै मे यस्त॒ खदी है, उसकी गदेन का पाश्वे भाग दिखलाई
पढ़ रद्या है, ओर उसका सर जरा-सा मुका हुआ है, वह मेज
की ओर गई ओर फिर चुल्हे की ओर गई। उसकी गति
इतनी स्वामाविक श्यौर गभीर थी मानो उसके भाव श्रन्तस्तल से
पूरी सचा के साथ निकल रदे ছীঁ। बह उनसे पणं रूपेण
परिचित था ।
काले अन्ना के रूप से इतना परिचित था कि यदि भरी
सढ़क पर दूर से भी उसे उड़ती निगाह से देख लेता, तब भी
बह उसे पहचान जाता |
चिन्ता के भार से भ्रस्त काले अपनी गभीर भ्रुज्ञाओं को
कालर और गरदन के बीच फेरने लगा । तुरन्त उसने अपने को
सीढ़ी से नीचे की ओर जाते पाया ।
तब तक बह दरवाजे को खट-खटाकर उसे खोल चुका था।
सामने अन्ना ?
बह खिड़की से कमरे के बीच में आई और मेज पर से
एक् प्लेट उठाया।
ओर उसने महसूस किया मानव को जीती-जागती मूर्दि
1 £২]
User Reviews
No Reviews | Add Yours...