रामवनगमन | Ramvangamn

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Ramvangamn by आचार्य रामचंद्र शुक्ल - Aacharya Ramchandra Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राम-वन्तगमन | ৬ भी करते हैं आर আল লী बातों पर उपदेश देने पर भी कान नहीं देते ! खसलार रूपी समुठठ मथने मे दशरथ रूपी सदराचल को फष्ट उठाना होगा । राम ओर सीन! को भी परीत्ता देनी होगी। मथनी हिलाये बिना मक्खन खाने को नहीं मिलता। सगर लोग तो सीधा बाजार से लेकर खाने में पाप का ठल जाना मान वये है। लोग समते दे कि वाजाग से खरीदकर ख( लिय! तो प्रार॑न समारंभकरे पापसे दुटकारा पालिया। मीधा खनेसे पाप टल जाने के श्रपपूर्ण विचार ने पेसी->मी वुर।धर्या पिद करटी है কি कुछ कएा नहीं जा सकता । इस सिथ्या धाग्णा ने बहुतों का धर्ममी बिगाड़ा है ओर स्वास्थ्य को भी चौपट कर दिया है। “सीधा खाने से पाप टल जाना गानने वाले लोगो के नमन्त एक प्रस उपस्थित कथा ज सकता है| इस प्रश्न पर उन्हें प्रमाणिकता के साथ विचार करना चाहिए | कल्पना कीजिए, एक श्रदमी सीधी वस्तु के उपभोगे पप छा उल जाना मानता ट । चद पटता हे कि सासारिक प्रयुत्ति जितनी क्म हे परार पाप जलिनना कम लगे उननागी श्रच्ाटै 1 एसी श्थितिमें प्रगर म प्पपन। पिवप्त फरता तो व्रहत श्रारमन समारंस एेग। । वारत नधरा व(न~रच्चया का स्पिलने पिलासे গাহি नैः लिए बहुत-्सी অন্বাজিহ আন্না प्रोगी। इतना ही বাতা, पिवाह से जो सावान-परम्पर चाल होगा उसदी साति




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