चोर की प्रेमिका | Chor Ki Premika

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Chor Ki Premika by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीर मन्दिर चौंधियाई जा रही हैं !** ৯ कल्याणी धकी-माँदी-सी चबूतरे पर बेठ गई और व्यथित स्वरं मे बोलो, धमुत्तय्या! * “मुत्तय्यन नहीं, बुद्ध, कदो ॥ सुक्तय्यन नें उसकी बात काटकर कहा । “जले पर नमक न छिढ़को मुत्तय्या !? मुत्तय्यन कुष नहीं बोला | नीची निगाह किये अचाक बैठा रहा । कल्याणी बोलती गई.- “तुम कुछ इस तरह वात कर रहे हो, जेसे में ही अपराधिन हूँ । आख़िर सेरा क्या फसूर है ? तुमसे मिलने के लिए सें श्राज पहलो बार थोढ़े हो आ रही हूँ” कितने अरसे से कद्द रही हूँ कि चलो, दोनों यहाँ से कह्दों दूर देश भाग चलें | तुममें € इसकी हिस्मत नहीं, तो में क्या कर सकती थौ १ श्रव भौ समय है। अगर छुम # श्रपना मन द्द्‌ कर ल), तो सैं श्राज्ञ, श्रभी, इसी घदी, तुम्हारे साथ चलने को तैयार र । सेरेतिएु इस संघार से तुमते श्रधिक प्यारी वस्तु कोड नहीं है | बताओ, तैयार # हे तुम ? बोलो न | चुप क्यों हो १? १ सुत्तव्यन तीखे स्वर सें बोला, “वाह । वदी अच्छी सलाह है, ज़रूर (हल दोनों तो मजे से भाग सकते हैं, लेकिन बेचारी श्रभिरासी का क्या होगा ? उसे कुए # में घकेलकर चले जाये क्या १? पि ष्कुषु मे क्यो धरले १ जव समय श्रायगाः को-न-फोडई उससे व्याह कर # ही सैगा। जिसकी किस्मत में जो बदा है; घह होगा | एक की मुसीबत फो दूसरा अपने सिर पर स्यो मेले १० “हाँ। एक की मुसीबत दूसरे को अपने ऊपर लेनी ही होगी । सौाँ ले झत्यु- शय्या पर पद़े-पढ़े मुकपते यह घचन लिया था कि श्रमिरामी की ऐसी सावधानी के ˆ साय देख-भाल कहूँ जिससे माता-पिता का अभाव उसे महसूस न होने पाय । में वचन-बद्ध हू । उसे नहीं भूल गा । में अभिरामी को छोड़कर नहीं आरा सकता । तुम चाष्ट त्तो उस वृदे से व्याह फर लो श्रौर सुखो रदो 1», प्र फट्यायी को श्यो से चिनगारि्यौ निकलने लगीं 1 वष्ट उडकर জী হী . गई शऔऔर उसने तीखे स्वर से पूछा, “क्या, यह बात आख़िरो है ९ त ष्ञी द्य ¡ यह मेरा श्नन्तिम निरणंय है |” रह “तो फिर ऐसा ही हो। में बूढ़े से ही व्याह फर लगी । तुम्हारैन्जैंसे ति कमर से सफोद बालो वाले बूढ़े हज़ार दर्जे अच्छे 1% का इतना कहकर फल्याणो तेज्ञा के साथ चहों से चल दो । গ্সীল ঘীল গদীহ ४ ध्यथा के मारे उसकी आंखों से गरम-गरम आस छलक निकले । वह सुत्तय्यन पर | १ ] 7 ५




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