संतोष कहाँ ? | Santosh Kahan ?
श्रेणी : नाटक/ Drama, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संतोष कहाँ! |
मचत्ताराम-
( एक कुर्सी पर बैठते हुए ) अच्छा, तो फिर बैठो ।
[ रमा चुपचाप बैठ जाती है। कुछ देर निस्तब्धता रहती है। ]
मनसाराम--
( रमा की ओर देखते हए ) क्यों स्मा ! विवाह के पश्चात् आज
तक मेरा तुमसे इतना कम बोलना, दिनरात पुस्तको में ही गड़ा रहना
तुम्हे कभी नही अखरा !
रमा--
( कुछ देर सोचते रहने के बाद ) आपके पास अधिक से अविक
रहने की इच्छा रहते हुए भी आपके साथ ज्यादा से ज्यादा बातचीत
करने की अमिलापा रखते हुए भी आपका मितभापी रहना, या सदा
पुस्तकों का अवलोकन करते रहना, सुझे अखरता नहीं है। (कुछ
रुककर) अगर अखरे तो आप पर क्रोध आना चाहिये, वह आज तक
कभी नहीं आया |
मचसारास---
ओर घर का यह आर्थिक कष्ट कभी गेहूँ नहीं है तों कमी चावल
नहीं, कभी घी नही है, तो कभी शक्कर नहीं, कभी कपडे ही नहीं है
ओर कभी और कुछ नहीं, इससे तुम्हे दुख नहीं पहुँचता !
रमा--
( दुछ देर सोचने के पश्चात् ) दुख ! नहीं, दुख तो कभी
{ १३
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