चित्रांगदा | Chitrangada
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९७ )
-पढ़ते हैं । केवल तू ही नारी है। एक मात्र तू ही पूर्ण दिखलाई
देती है। तू ही सब कुछ जान पड़ती है, विश्वभर का ऐश्वर्य तू ही
- समझ पड़ती है, सारी दरिद्रता का विनाश तू ही समम में शआती
है, ओर एक मात्र तू ही परिश्रम का विधाम-स्थान जान पड़ती है;
कौन जाने तुमः देखकर एकाएक यहं बातत क्यो ध्यान में आये
जाती रै कि प्रन्धक्रार् के महार्णव मे जव श्रानन्दं किरण का
प्रथम प्रभाव हुआ था, तब सृष्टिकमल एक त्तण भरे दिशाः
दिशाओं में खिल उठा था ।-बहुत दिन भले ही लग जाय, परच्ठु,
ओर सब, धीरे-घीरे, थाड़ा'थेड़ा कर समम में आ जाते है,
किन्तु जब तेरी ओर देखता हूँ तभी तू सम्पूर्ण रूप से दिखकाई
देती है, कुछ कमी नही जान पड़ती, तथापिमै' तेरा पार नदरी
पाता । एक वार मृगयाछ्छान्त दाकर मै दापहर के समय प्यासा
ओर सन्तप्त हुआ कैलास शिखर पर पुष्पों से खुशामित हुए
मानस-सरावर केतीर पर गया) देखा ता जानन पड़ा कि रख
सुर-सराबर मे निर्मल मती के रसा स्वच्छ जल भरा हुआ है।
स्पष्ट देख पड़ने पर भी इध पता नदीं है कि तल-देश कितना
गहरा है । अनन्त गम्भीरता जान पड़ी । मघ्यान्हके सूयं की
किरणों स्वर्णं नलिनी के सुवणं सृणान के साथ मिलकर গলা
ओर असीम जल में मिल, जल की हिलार के साथ हिल रही
हैं, मानों करेडड़नकरेड़ ज्वालामयी नागिन जहरा रही' है। ज्यत्न_
पड़ा कि सहस्क्र भगवान सुर्य हजार उंगलियों से दशास
. कर यह बतला रहे हैं. कि जन्मञआन्त ओर कम॑शास्त महुष्या कत
चिर विश्राम फरते का श्चनत्त शीचल ओर सुन्दर स्थान यही हे
चही निर्मल अतलनाम्भीरता सुझे; तुझमे दिघलाई देती है । चारों
. और से देव इशारा कर सुझे समझता रहा है रि मेरे कीलिक्तिष्ट
: जीवन का निर्बाण तेरे अलोकिक सोंदर्य के आलोक में ही दे ।
॥
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