श्री जवाहर किरणावली [भाग १९] [जीवन-नारी] | Shri Javahar Kirnavali [Part 19] [ Jivan-Nari]
श्रेणी : संदर्भ पुस्तक / Reference book
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
228
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सुमतिलाल बांठिया - Sumatilal Banthiya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वतन्त्रता ही ने पारिवारिक सुखो पर पानी-सा फेर दिया है। महिलाए
उसका उचित उपयोग नही करतीं | जहा दोनो के हृदयो मे एक दूसरे के प्रति
तनिक भी त्याग ओर बलिदान की भावना न हो, वहा कोटुम्बिक जीवन मे
सरसता की आशा किस प्रकार की जा सकती है? विचारो की थोडी सी
विभिन्नता शीघ्र ही हृदयो मे कटुता व मलिनता उत्पन्न कर सकती है। यूरोप
मे एसी परिस्थितिया अत्यन्त भीषण रूप धारण कर खडी हे । वहा विचारक-
गण अपने मस्तिष्क की शक्ति को इन समस्याओ को सुलझाने मे लगा रहे
हैं, पर यह विषय मस्तिष्क का न होकर हृदय का है। जब तक समाज की
विशेष रूप से महिलाओ की मनोवृत्तियो मे परिवर्तन नही हो जाता, कौटुम्बिक
जीवन मे सुधार की आशा असम्भव है।
ठीक ऐसी ही परिस्थितिया अभी भारतवर्ष मे होती जा रही है।
ज्यो-ज्यो स्त्री-शिक्षा का प्रचार होता जा रहा है, महिलाओ की सामाजिक
व आर्थिक स्वतन्त्रता के नारे लगाए जा रहे हैं। पाश्चात्य सभ्यता की चमक
भारतीय-महिलाओ के सरल नेत्रो मे एक विचित्र-सा जादू कर रही है, वे
चकार्चौघ होकर स्थिर दृष्टि से कुछ सोच भी नहीं सकती । अभी तक तो यही
दिखलाई पड रहा है कि हमारी शिक्षा पाश्चात्य सभ्यता की ओर जा रही है।
कोरी आर्थिक स्वतन्त्रता से जीवन मे जो नीरसता तथा कर्कशता आ सकती
है उसी के लक्षण यहा भी दिखाई पडने लग गए हैं। सम्भवत इस प्रकार
की शिक्षा दाम्पत्य-जीवन को सरस एव सुन्दर बनाने मे अपूर्ण रहेगी।
शिक्षिता स्त्रिया स्वाभाविक रूप से पहिले से ही कुछ अत्मगौरव का अनुभव
करती हँ जिसके कारण पति के प्रति सहज प्रेम ओर वह आदरभाव नहीं
होता जो सफल दाम्पत्य-जीवन का प्राण है।
हमे विश्वविद्यालयो के पाठयकम की शिक्षा के अलावा एेसी शिष्षा
का प्रबन्ध करना चाहिए जो कियात्मक रूप से सरस कौटुम्बिक जीवन के
लिए उपयोगी सिद्ध हो सके | केवल अर्थप्राप्ति ही तो जीवन को सुखी नीं
दना सकती । निर्धन पुरुष भी श्रीमन्तो की अपेक्षा अधिक सन्तुष्ट निश्चित
तथा सुखी रह सकते हैं। प्रश्न तो हृदय मे प्रेम और सहानुभूति का है। जहा
पवित्र प्रेम हो वहा कैसी भी परिस्थिति मे जीवन सरस रहता है।
हम अभी यह अनुभव नहीं कर रहे हैं कि आर्थिक स्वतन्त्रता के साथ
साथ स्त्री के प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र मे प्रवेश करने पर उसकी भावनाओं मे
स्वार्थपरता आने की अधिक सम्भावना है ठीक यूरोप की तरह । लेकिन
स्त्रियो फो आत्मसमर्पण प्रेम अभैर त्याग की सजीव प्रतिमा होना चाहिए।
ह ১০০১১১১১১১১ नारी समदनः বি
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