शिक्षाप्रद ग्यारह कहानियां | Shikshaprad Gyarah Kahaniya
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)योगक्षेमका वहन ९५.
पडे 1 भगवानने उनको उठाकर अपने हदयसे लगा लिया । उस
समय पडितजीकी बड़ी विचित्र दशा थी । उनका शरीर रोमाश्चित
था, नेत्रोसे ओंसुओंकी धारा बह रही थी, हदय प्रफुल्लित था ओर
वाणी गदगद थी । फिर भी वे किसी तरह धीरज धरकर बोले-- नाथ |
मैं तो एक अर्थका दास हूँ | मुझ-जैसे पामरपर भी जो आपने इतनी
कृपा की, इसमें आपका परम कृपालु स्वभाव ही हेतु है । यदि मेरे
भाव और आचरणोंकी ओर ध्यान दिया जाय तो आपके दर्शन तो
दूर रहे, मुझे कहीं मरकमें ठौर नहीं मिलनी चाहिये | मैंने आप-जैसे
सर्वथा निर्दोष महापुरुषपर दोष लगाया--मुझ-जैसा अर्थकामी नीच
कोई शायद ही होगा । में तो अर्थके लिये ही आपको भजता था,
तभी तो आपने मेरे सतोषके लिये ये रत्न दिये हैं | मैं बडा भारी
सकामी हूँ, इसीलिये तो मैंने आपको सासारिक योगक्षेम चलानेवाला
ही समझा, नहीं तो में पास्मार्थिक योगक्षेमकी ही कामना करता ।
जो निष्कामभावसे केवल मात्र आपपर ही निर्भर हैं, वे तो इस
योगक्षेमको भी नहीं चाहते; किंतु आप तो बिना उनके चाहे ही
उनका योगक्षेम वहन करते ই । मुञ्च-जैसे अभागेमें ऐसी श्रद्धा, प्रेम,
विश्वास ओर निर्भरता कहो, जो आप-जैसे महापुरुषके हितुरहित
अनन्य-शरण होता ।'
भगवान् बोले--'इसमे तुम्हारा कोई दोष ही नहीं है । तुम तो
मुञ्चपर ही निर्भर थे । मेरे आनेमे जो विलम्ब हुआ, यह मेरे खभावका
दोष है, पर अभीतक तुमने भोजन व्यो नदीं किया ?' पडितजीने
कहा--“जब आप कह गये थे कि भें फिर आकर मिरलुगा, तब
बिना आपके आये मैं कैसे भोजन करता । आप भोजनं कीजिये,
उसके बाद हमलोग भी प्रसाद पायेगे ।' भगवानने कहा--'नहीं-नहीं
चलो हमलोग एक साथ ही भोजन करें ॥ फिर ब्राह्यण-पलीने भगवानका
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