शिक्षाप्रद ग्यारह कहानियां | Shikshaprad Gyarah Kahaniya

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Shikshaprad Gyarah Kahaniya by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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योगक्षेमका वहन ९५. पडे 1 भगवानने उनको उठाकर अपने हदयसे लगा लिया । उस समय पडितजीकी बड़ी विचित्र दशा थी । उनका शरीर रोमाश्चित था, नेत्रोसे ओंसुओंकी धारा बह रही थी, हदय प्रफुल्लित था ओर वाणी गदगद थी । फिर भी वे किसी तरह धीरज धरकर बोले-- नाथ | मैं तो एक अर्थका दास हूँ | मुझ-जैसे पामरपर भी जो आपने इतनी कृपा की, इसमें आपका परम कृपालु स्वभाव ही हेतु है । यदि मेरे भाव और आचरणोंकी ओर ध्यान दिया जाय तो आपके दर्शन तो दूर रहे, मुझे कहीं मरकमें ठौर नहीं मिलनी चाहिये | मैंने आप-जैसे सर्वथा निर्दोष महापुरुषपर दोष लगाया--मुझ-जैसा अर्थकामी नीच कोई शायद ही होगा । में तो अर्थके लिये ही आपको भजता था, तभी तो आपने मेरे सतोषके लिये ये रत्न दिये हैं | मैं बडा भारी सकामी हूँ, इसीलिये तो मैंने आपको सासारिक योगक्षेम चलानेवाला ही समझा, नहीं तो में पास्मार्थिक योगक्षेमकी ही कामना करता । जो निष्कामभावसे केवल मात्र आपपर ही निर्भर हैं, वे तो इस योगक्षेमको भी नहीं चाहते; किंतु आप तो बिना उनके चाहे ही उनका योगक्षेम वहन करते ই । मुञ्च-जैसे अभागेमें ऐसी श्रद्धा, प्रेम, विश्वास ओर निर्भरता कहो, जो आप-जैसे महापुरुषके हितुरहित अनन्य-शरण होता ।' भगवान्‌ बोले--'इसमे तुम्हारा कोई दोष ही नहीं है । तुम तो मुञ्चपर ही निर्भर थे । मेरे आनेमे जो विलम्ब हुआ, यह मेरे खभावका दोष है, पर अभीतक तुमने भोजन व्यो नदीं किया ?' पडितजीने कहा--“जब आप कह गये थे कि भें फिर आकर मिरलुगा, तब बिना आपके आये मैं कैसे भोजन करता । आप भोजनं कीजिये, उसके बाद हमलोग भी प्रसाद पायेगे ।' भगवानने कहा--'नहीं-नहीं चलो हमलोग एक साथ ही भोजन करें ॥ फिर ब्राह्यण-पलीने भगवानका




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