श्रावक विधि | Shravak Vidhi

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Shravak Vidhi by तिलक विजय पंजाबी - Tilak Vijay Punjabi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भ्राद्ध-विधि प्रकरण रै ` ` इल गाथा में मंगल निरूपण करके विद इस गाथा में मंगछ निरूपण करके विद्या, राज्य ओर धम ये तीनों किसी योग्य मनुष्य को री दिये जाते है अतः श्रावकः धके योस्य पुरूषका निरूपण करते है ए सङततणस्सज्ञग्मो मह गपगई विसेसनिऽणमई । नयमग्गरईतह दढनिअवयणहिहविणिदिद्े ॥ १॥ १ भद्रक प्रकृति, २ विशेष निपुणमति-विशेष समभदार, ই न्यायमा्ग॑रति ओर द्वृढनिजप्रतिज्षणिति । इस प्रकार कै बारगुण संपन्न मनुष्य को सवेञोने श्रावक धमं के योग्य बतलाया है । मद्रक प्रकृति याने माध्य- হ্যাছি गुणयुक्त दो परन्तु कदाग्र ग्रस्त हदय न हो देसे मनुष्य को श्रावक धमे क योग्य समभना चाये 1 कहा है कि-- ~ रतो दुट्ढों मूढो पुथ्व॑वुगगाहिओं अचत्तारि। - एए पम्माणारेदा जरिहो पुण होइ मइझथ्थों ॥ १-॥ ~ १ रक्त याने रागीए मनुष्य धर्मके अयोग्य है। जैसे कि भुवनभानु केवली का जीव पूर्वभच में राजा का पुत्र त्रिदुण्डिक मत का भक्त था। उसे जैनगशुरु ने बड़े कष्टसे प्रतिबोध देकर दृढधर्मी बनाया, तथापि वह पबे परिचित तरिदंडीके वचनो पर द्र्ीराग दोने से सम्यक्त्व को चमनकर अनन्त भवो भ्रमण करता रहा । २ द्वेषी भी -सद्र- चाहु स्वामीके गुरुबन्धु बराहमिहरके समान धर्मके अयोग्य है । ३ सूले याने वचन भावाथे का अनज़ान ब्रामीण कुल पुत्र के समान, जैसे कि किसी एक गांवमें रहनेवाले जाटका छड़का किसी राजा के यहां नोकरी करने के लिये चला, उस समय उसकी माताने उसे शिक्षा दी कि चेटा ररक का विनय करना } लड़के ने पूछा माता} विनय कैसे किया जाता है? माता ने कहा “मस्तक झुकाकर जुहार करना” | माता का.वचन मन में धारण कर वह विदेशयात्राके लिये चछ पड़ा | मार्गमें हिरनोंको पकड़नेके लिये छिपक्रर खड़े हुये पारधियोंकोी देखकर उसने अपनी माताकी दी हुई शिक्षाके अनुसार उन्हें मस्तक झुकाकर उच्च स्वससे ज्ुह्ार किया 1 ऊंचे स्वरसे की इई जहार का शब्द्‌ खुनकर समीपवतीं सब द्ग माग गये, इससे पारधियोंने उसे खब पीटा | लड़का बोला मुझे क्‍यों मारते हो, मेरी माता ने मुझे ऐसा सिखलाया था, पारधी बोले तू बड़ा सूखे है ऐसे प्रसंग पर “चुपचाप आना चाहिये” वह बोला अच्छा अवसे ऐसा ही करूगा.। छोड़ देने पुर आगे चला । आगे रास्तेमें घोची छोग कपड़े घोऋर खुखा रहे थे। यह देख वह मार्ग छोड़ उन्मार्गले चुपचाप धीरे धीरे तस्करके समान डरकर चलने लगा | उसकी यह चेष्टा देख घोवियोंकों चोरकी शंका होनेसे पकड़ कर पूघ मारा। पूर्वोक्त रीकत सुनानेसे धोवियोने उसे छोड़ दिया ओर कहा कि रेके प्रसंग पर “धोखे चनो उञ्चल वनो” ऐसा शब्द्‌ बोलते चलना चाहिये | उस समय दर्पात की बड़ी चाहना थी, रास्तमे किखान-खडे हुये खेती बोनेके लिये आकाशमें वादों की ओर देख रहे थे । उन्हें देख बह बोलने रूपा कि “घौले बनो ञ्च घनो” । अपशकुनकी प्रान्तिसे किलानोंने उसे खब ठोका । वहां पर सी पूर्चोक्त घटना खुना देनेसे ऋषकोंने उसे छोड़ दिया और सिखलाया कि ध्याव रखना ऐसे प्रसंग पर “बहुत हो बहुत हो” ऐसा शब्द घोलना।




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