प्रवचनरत्नाकर भाग २ | Pravachanratnakar Bhaag 2

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Pravachanratnakar Bhaag 2  by डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल - Dr. Hukamchand Bharill

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ख्नुवादक को ओर से . जब परमपृज्य श्राचार्यों के श्राध्यात्मिक प्ररो पर्‌ हूए य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी के गूढ़, गम्भी र, गहनतम, धम ध्र) ॥ तलस्पर्श प्रवचनों का गुजराती से हिन्दी भाषा में अ्रनुवाद । करने के लिए मुभ कहा गया तो में अश्रसमंजस में पड़ गया | मेरी स्थिति सापि द्र र हो गई। मैंने कभी यह सोचा ही नहीं था कि यह प्रस्ताव मेरे पास + ग्रा सकता है । . अरब एक ओर तो मेरे सामने यह मंगलकारी, भवतापहारी, कल्याणकारी, भ्रात्मविणुद्धि में निमित्तभूत कार्य बरतने का स्वर्ण अवसर था, जो छोड़ा भी नहीं जा रहा था; तो दूसरी शोर इस महान कार्य दो श्राद्योपात्त निर्वाह करने की बड़ी भारी जिम्मेदारी | भेरी दृष्टि में यह केवल भाषा परिवतंन का सवाल ही नहीं था, बल्कि आगग के अ्रभिप्राय को सुरक्षित रखते हुए, गुरुदेवश्री की सूक्ष्म कथनी के भावों का प्रनुगमन करते हुए, प्राजल हिन्दी भाषा मे, उसकी सहज व सरल श्रभिव्यक्ति होना मैं आवश्यक मानता था 1 भ्रन्यथा थोड़ी सी चूक में ही श्रर्थ का श्नर्थ भी हो सकता था | इन सव वातो पर गम्भीरता से विचार करके तथा दूरगामी श्रात्म- लाभ के सुफल का विचार कर, प्रारंभिक परिश्रम और कठिनाइयों की एताह न करके 'गुरुदेवश्री के मंगल भ्राशीर्वाद से सब अ्रच्छा ही होगा! - यह सोचकर भ्रन्ततोगत्वा मैंने इस काम को अपने हाथ में ले ही लिया । इस कार्यभार को संभालने में एक संवल यह भी था कि इस हिन्दी प्रवचन- प्तताकर्‌ ग्रन्थमाला के प्रकाशन का कार्य पं० टोडरमल स्मारक ट्रस्ट जयपुर ने ही संभाला था और सम्पादन का कार्य डॉ० हुकमचन्द भारित्ल को सौंपा जा रहा था । यद्यपि गुजराती भाषा पर भेरा कोई विशेष भ्रधिकार नहीं है, तथापि पूज्य गरुदेवश्री के प्रसाद से उनके गुजराती प्रवचन सुनते-सुनते एवं उन्हीं के प्रवचनों से सम्बन्धित सत्साहित्य पढ़ते-पढ़ते उन्तकी शैली और भावों से सुपरिचित हो जाने से मुझे इस अनुवाद में कोई विशेष कठिनाई ( हां )




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